"हरी नारायण आपटे" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
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'''हरी नारायण आपटे''' ([[मार्च ८]] [[इ.स. १८६४|१८६४]] - [[मार्च ३]] [[इ.स. १९१९|१९१९]]) हे [[मराठी भाषा|मराठी]] कादंबरीकार होते. |
'''हरी नारायण आपटे''' ([[मार्च ८]] [[इ.स. १८६४|१८६४]] - [[मार्च ३]] [[इ.स. १९१९|१९१९]]) हे [[मराठी भाषा|मराठी]] कादंबरीकार होते. |
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| स्फुट गोष्टी || || || |
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| आजच || अपूर्ण कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९०४-१९०६ |
| आजच || अपूर्ण सामाजिक कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९०४-१९०६ |
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| उष:काल||कादंबरी|| || १८९५-१८९७ |
| उष:काल||ऐतिहासिक कादंबरी|| || १८९५-१८९७ |
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| कर्मयोग|| अपूर्ण कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन ||१९१३-१९१७ |
| कर्मयोग|| अपूर्ण सामाजिक कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन ||१९१३-१९१७ |
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| कालकूट ||अपूर्ण कादंबरी || || १९०९-१९११ |
| कालकूट ||अपूर्ण ऐतिहासिक कादंबरी || || १९०९-१९११ |
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| केवळ स्वराज्यासाठी||कादंबरी|| ||१८९८-१८९९ |
| केवळ स्वराज्यासाठी|| ऐतिहासिक कादंबरी|| ||१८९८-१८९९ |
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| गड आला पण सिंह गेला || कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९०३-१९०४ |
| गड आला पण सिंह गेला || ऐतिहासिक कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९०३-१९०४ |
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| गणपतराव ||अपूर्ण कादंबरी||आधी मासिक’मनोरंजन’, नंतर रम्यकथा प्रकाशन || १८८६-९२ |
| गणपतराव ||अपूर्ण सामाजिक कादंबरी||आधी मासिक’मनोरंजन’, नंतर रम्यकथा प्रकाशन || १८८६-९२ |
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| चंद्रगुप्त|| कादंबरी || || १९०२-१९०५ |
| चंद्रगुप्त|| ऐतिहासिक कादंबरी || || १९०२-१९०५ |
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| चाणाक्षपणाचा कळस || कादंबरी || आधी मनोरंजन मासिक, नंतर रम्यकथा प्रकाशन ||१८८६-१८९२ |
| चाणाक्षपणाचा कळस || सामाजिक कादंबरी || आधी मनोरंजन मासिक, नंतर रम्यकथा प्रकाशन ||१८८६-१८९२ |
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| जग हें असें आहे... || कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन ||१८९७-१८९९ |
| जग हें असें आहे... || सामाजिक कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन ||१८९७-१८९९ |
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| तारा||कादंबरी|| || |
| तारा||सामाजिक अनुवादित कादंबरी|| || |
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| पण लक्षात कोण घेतो? || सामाजिक कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १८९०-१८९२ |
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| पांडुरंग हरी||कादंबरी|| || |
| पांडुरंग हरी|| सामाजिक अनुवादित कादंबरी|| || |
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| भयंकर दिव्य || कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९०१-१९०३ |
| भयंकर दिव्य || कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९०१-१९०३ |
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| मधली स्थिति( आजकालच्या गोष्टी)|| कादंबरी ||आधी मासिक ’पुणे वैभव’, नंतर रम्यकथा प्रकाशन || १८८५-१८८८ |
| मधली स्थिति( आजकालच्या गोष्टी)|| सामाजिक कादंबरी ||आधी मासिक ’पुणे वैभव’, नंतर रम्यकथा प्रकाशन || १८८५-१८८८ |
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| माध्यान्ह||कादंबरी|| || १९०६-१९०८ |
| माध्यान्ह|| सामाजिक कादंबरी|| || १९०६-१९०८ |
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| मायेचा बाजार || कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९१०-१९१२ |
| मायेचा बाजार || सामाजिक कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९१०-१९१२ |
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| मी ||कादंबरी|| रम्यकथा प्रकाशन || १८९३-१८९५ |
| मी || सामाजिक कादंबरी|| रम्यकथा प्रकाशन || १८९३-१८९५ |
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| म्हैसूरचा वाघ ||अपूर्ण अनुवादात्मक कादंबरी || ||१८९०-१८९१ |
| म्हैसूरचा वाघ ||अपूर्ण अनुवादात्मक ऐतिहासिक कादंबरी || ||१८९०-१८९१ |
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| यशवंतराव खरे ||कादंबरी|| रम्यकथा प्रकाशन || १८९२-१८९५ |
| यशवंतराव खरे || सामाजिक कादंबरी|| रम्यकथा प्रकाशन || १८९२-१८९५ |
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| रूपनगरची राजकन्या || कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९००-१९०२ |
| रूपनगरची राजकन्या || ऐतिहासिक कादंबरी || रम्यकथा प्रकाशन || १९००-१९०२ |
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| वज्राघात || कादंबरी|| ||१९१३-१९१५ |
| वज्राघात || ऐतिहासिक कादंबरी|| ||१९१३-१९१५ |
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| शिष्यजनविलाप||श्लोकमय विलापिका||साप्ताहिक केसरी ||मार्च १८८२ |
| शिष्यजनविलाप|| श्लोकमय विलापिका||साप्ताहिक केसरी ||मार्च १८८२ |
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| सूर्यग्रहण||अपूर्ण कादंबरी|| ||१९०८-१९०९ |
| सूर्यग्रहण|| अपूर्ण ऐतिहासिक कादंबरी|| ||१९०८-१९०९ |
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| सूर्योदय ||कादंबरी || || १९०५-१९०६ |
| सूर्योदय || ऐतिहासिक कादंबरी || || १९०५-१९०६ |
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| हरीभाऊंचीं पत्रें <ref>हरी नारायण आपटे यांनीं श्री काशीबाई व गोविंद वासुदेव कानिटकर यांस लिहिलेलीं पत्रें ; दोन शब्द, काशीबाई कानिटकर ; प्रस्तावना वाग्भट नारायण देशपांडे</ref> || पत्रसंग्रह || ऐक्यसंपादन मंडळ || |
| हरीभाऊंचीं पत्रें <ref>हरी नारायण आपटे यांनीं श्री काशीबाई व गोविंद वासुदेव कानिटकर यांस लिहिलेलीं पत्रें ; दोन शब्द, काशीबाई कानिटकर ; प्रस्तावना वाग्भट नारायण देशपांडे</ref> || पत्रसंग्रह || ऐक्यसंपादन मंडळ || |
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१६:१६, ८ मार्च २०१२ ची आवृत्ती
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हरी नारायण आपटे (मार्च ८ १८६४ - मार्च ३ १९१९) हे मराठी कादंबरीकार होते.
प्रकाशित साहित्य
आपटे अर्वाचीन मराठी कादंबरीचे जनक मानले जातात. त्यांच्या लिखाणावर महादेव गोविंद रानडे, गोपाळ कृष्ण गोखले प्रभृतींचा प्रभाव होता. २५ कादंबर्या लिहिणार्या ह.ना.आपटयांची 'पण लक्षात कोण घेतो?' ही कादंबरी मराठी साहित्यात मानदंड समजली जाते. सतत २५-३० वर्षे अशाप्रकारचे मराठी साहित्य निर्माण झालेल्या त्या ह.ना.आपट्यांच्या कालखंडाला हरीभाऊ युग म्हणतात, आणि हरीभाऊ आपट्यांना युगप्रवर्तक.
नाव | साहित्यप्रकार | प्रकाशन | प्रकाशन वर्ष (इ.स.) |
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स्फुट गोष्टी | |||
आजच | अपूर्ण सामाजिक कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १९०४-१९०६ |
उष:काल | ऐतिहासिक कादंबरी | १८९५-१८९७ | |
कर्मयोग | अपूर्ण सामाजिक कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १९१३-१९१७ |
कालकूट | अपूर्ण ऐतिहासिक कादंबरी | १९०९-१९११ | |
केवळ स्वराज्यासाठी | ऐतिहासिक कादंबरी | १८९८-१८९९ | |
गड आला पण सिंह गेला | ऐतिहासिक कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १९०३-१९०४ |
गणपतराव | अपूर्ण सामाजिक कादंबरी | आधी मासिक’मनोरंजन’, नंतर रम्यकथा प्रकाशन | १८८६-९२ |
चंद्रगुप्त | ऐतिहासिक कादंबरी | १९०२-१९०५ | |
चाणाक्षपणाचा कळस | सामाजिक कादंबरी | आधी मनोरंजन मासिक, नंतर रम्यकथा प्रकाशन | १८८६-१८९२ |
जग हें असें आहे... | सामाजिक कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १८९७-१८९९ |
तारा | सामाजिक अनुवादित कादंबरी | ||
पण लक्षात कोण घेतो? | सामाजिक कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १८९०-१८९२ |
पांडुरंग हरी | सामाजिक अनुवादित कादंबरी | ||
भयंकर दिव्य | कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १९०१-१९०३ |
मधली स्थिति( आजकालच्या गोष्टी) | सामाजिक कादंबरी | आधी मासिक ’पुणे वैभव’, नंतर रम्यकथा प्रकाशन | १८८५-१८८८ |
माध्यान्ह | सामाजिक कादंबरी | १९०६-१९०८ | |
मायेचा बाजार | सामाजिक कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १९१०-१९१२ |
मी | सामाजिक कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १८९३-१८९५ |
म्हैसूरचा वाघ | अपूर्ण अनुवादात्मक ऐतिहासिक कादंबरी | १८९०-१८९१ | |
यशवंतराव खरे | सामाजिक कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १८९२-१८९५ |
रूपनगरची राजकन्या | ऐतिहासिक कादंबरी | रम्यकथा प्रकाशन | १९००-१९०२ |
वज्राघात | ऐतिहासिक कादंबरी | १९१३-१९१५ | |
शिष्यजनविलाप | श्लोकमय विलापिका | साप्ताहिक केसरी | मार्च १८८२ |
सूर्यग्रहण | अपूर्ण ऐतिहासिक कादंबरी | १९०८-१९०९ | |
सूर्योदय | ऐतिहासिक कादंबरी | १९०५-१९०६ | |
हरीभाऊंचीं पत्रें [१] | पत्रसंग्रह | ऐक्यसंपादन मंडळ |
संदर्भ
- ^ हरी नारायण आपटे यांनीं श्री काशीबाई व गोविंद वासुदेव कानिटकर यांस लिहिलेलीं पत्रें ; दोन शब्द, काशीबाई कानिटकर ; प्रस्तावना वाग्भट नारायण देशपांडे