"टोपणनावानुसार मराठी कवी" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
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| [[मुक्तेश्वर]] || [[मुक्तेश्वर चिंतामणी मुद्गल]] |
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| [[होनाजी]] || [[होनाजी सयाजी शेलारखाने]] |
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१५:५८, १२ फेब्रुवारी २०१३ ची आवृत्ती
मराठी भाषेत जेव्हा काव्यरचनेला सुरुवात झाली तेव्हापासून कवी बहुधा आपले पहिले नाव कविनाम म्हणून वापरत असत. ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव, मोरोपंत, सगनभाऊ ही या कवींची प्रथम नावे होती. प्रथम नाव, मधले नाव आणि नंत आडनाव लिहायची पद्धत नंतरच्या काळात सुरू झाली. आधुनिक काळातदेखील इंदिरा, कवी गोविंद, दत्त, नीरजा, पद्मा, मनमोहन, माधव, मीरा, यशोधरा, विनायक, संजीवनी या कवि-कवयित्रींनी स्वत:च्याच पहिल्या नावाने काव्यलेखन केले. अनेक कवींनी आपल्या सग्यासंबंधींच्या नावाला अग्रज, अनुज, कुमार, जूलियन, तनय, सुत, इत्यादी प्रत्यय लावून आपापली टोपणनावे सिद्ध केली. इतरांनी या पद्धतींशी फारकत घेऊन अत्यंत स्वतंत्र टोपणनावे घेतली आणि आपले काव्यलेखन केले.
इ.स. १९६०पासून टोपणनावाखाली कविता करण्याची पद्धत मराठीतून बहुधा हद्दपार झाली आहे.
काही मराठी आणि अन्य भारतीय कवींच्या टोपणनावांची ही यादी :