"बंजारा" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
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बंजारा हा समाज लमानी, लम्बाडि ,बंजारा लमानी,अशा विविध नावानी ओळखल्या जातो |
बंजारा हा समाज लमानी, लम्बाडि ,बंजारा लमानी,अशा विविध नावानी ओळखल्या जातो |
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भारत की सबसे सभ्य और प्राचीन संस्कृती सिंधु संस्कृती को माना गया है। इसी संस्कृती से जुड़ी हुई गोर- बंजारा संस्कृती है और इस गोर बंजारा समाज का वास्तव पुरी दुनियाभर में है और उन्हें अलग अलग प्रांत में अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे महाराष्ट्र में बंजारा, कर्नाटक में लमाणी, आंध्र में लंबाडा पंजाब में बाजीगर, उत्तर प्रदेश में नायक समाज और बाहरी दुनिया में राणी नाम से जाने जाते है। इस समाज के इ.स.पुर्व काल में बौद्ध और महावीर के भी पहले पीठागौर नाम के गौरधर्म के संस्थापक हुए है। इसके बाद ग्यारवी शताब्दी में दागुरु नामके द्वितीय धर्मगुरु होके गये है। द्वितीय धर्मगुरु ने शिक्षा का महत्व और मंत्र और समाज को दिया। वो मंत्र गोरबोली में शिकच शिकावच शिके राज धडावच, शिके जेरी साजपोळी, घीयानपोळी, इसका मतलब जो समाज शिक्षा प्राप्त करके अपने समाज को शिक्षीत करता है। वहीं समाज राज वैभव प्राप्त कर सकता है इसका उदा. पीठागौरने चंद्रगुप्त मौर्य, हर्षवर्धन जैसे महान विराट राजा को जन्म दिया। उसी तरह दागुरु के विचारों ने आला उदल, राजा गोपीचंद जैसे महान योद्धा वो को निर्मीत किया। इसी 12 वीं शताब्दी से लेकर 17 वी शताब्दी तक गौर बंजारा समान में बड़े बड़े योद्धा होके गये। जैसे महाराणा प्रताप के सेनापती जयमल फंतीहा और राजा रतनसिंग के सर सेनापती और राणी रुपमती के सगे भाई गोर बंजारा गौरा बादल। 16 वी और 17 वी शताब्दी के गौर बंजारा समाज के महान व्यापारी, उत्तर में लकीशों बणजारा और दक्षिण में जंगी, भंगी (भुकीया) और मध्यभारत के भगवानदारस वडतीया थे। ये सभी व्यापारी भारत के बड़े राजा-महाराजाओं को रसद (अनाज) पहुंचाने का काम करते थे। लेकिन आम जनता की फिकर इस गौर बंजारा समाज के संत सेवाला महाराज को थी, इसलिए उन्होंने आम जनता की सेवा और भलाई के लिए अपने विचारों का संघटन निर्माण किया और उनका नेतृत्व भी किया, उसी महान सतगुरु, समाजसुधारक, क्रांतीकारी, अर्थतज्ञ, आयुर्वेदाचारी और बहुजनों के (कोर-गोर) के धर्मगुरु संत सेवालाल का जन्म 15 फरवरी 1739 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुथ्थी तालुकास्थित गोलाल डोडी गांव में हुआ। अभी वो गांव सेवागड के नाम से जाना जाता है। |
भारत की सबसे सभ्य और प्राचीन संस्कृती सिंधु संस्कृती को माना गया है। इसी संस्कृती से जुड़ी हुई गोर- बंजारा संस्कृती है और इस गोर बंजारा समाज का वास्तव पुरी दुनियाभर में है और उन्हें अलग अलग प्रांत में अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे महाराष्ट्र में बंजारा, कर्नाटक में लमाणी, आंध्र में लंबाडा पंजाब में बाजीगर, उत्तर प्रदेश में नायक समाज और बाहरी दुनिया में राणी नाम से जाने जाते है। इस समाज के इ.स.पुर्व काल में बौद्ध और महावीर के भी पहले पीठागौर नाम के गौरधर्म के संस्थापक हुए है। इसके बाद ग्यारवी शताब्दी में दागुरु नामके द्वितीय धर्मगुरु होके गये है। द्वितीय धर्मगुरु ने शिक्षा का महत्व और मंत्र और समाज को दिया। वो मंत्र गोरबोली में शिकच शिकावच शिके राज धडावच, शिके जेरी साजपोळी, घीयानपोळी, इसका मतलब जो समाज शिक्षा प्राप्त करके अपने समाज को शिक्षीत करता है। वहीं समाज राज वैभव प्राप्त कर सकता है इसका उदा. पीठागौरने चंद्रगुप्त मौर्य, हर्षवर्धन जैसे महान विराट राजा को जन्म दिया। उसी तरह दागुरु के विचारों ने आला उदल, राजा गोपीचंद जैसे महान योद्धा वो को निर्मीत किया। इसी 12 वीं शताब्दी से लेकर 17 वी शताब्दी तक गौर बंजारा समान में बड़े बड़े योद्धा होके गये। जैसे महाराणा प्रताप के सेनापती जयमल फंतीहा और राजा रतनसिंग के सर सेनापती और राणी रुपमती के सगे भाई गोर बंजारा गौरा बादल। 16 वी और 17 वी शताब्दी के गौर बंजारा समाज के महान व्यापारी, उत्तर में लकीशों बणजारा और दक्षिण में जंगी, भंगी (भुकीया) और मध्यभारत के भगवानदारस वडतीया थे। ये सभी व्यापारी भारत के बड़े राजा-महाराजाओं को रसद (अनाज) पहुंचाने का काम करते थे। लेकिन आम जनता की फिकर इस गौर बंजारा समाज के संत सेवाला महाराज को थी, इसलिए उन्होंने आम जनता की सेवा और भलाई के लिए अपने विचारों का संघटन निर्माण किया और उनका नेतृत्व भी किया, उसी महान सतगुरु, समाजसुधारक, क्रांतीकारी, अर्थतज्ञ, आयुर्वेदाचारी और बहुजनों के (कोर-गोर) के धर्मगुरु संत सेवालाल का जन्म 15 फरवरी 1739 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुथ्थी तालुकास्थित गोलाल डोडी गांव में हुआ। अभी वो गांव सेवागड के नाम से जाना जाता है। भौगोलिक और ऐतिहासिक जानकारी होने के कारण गोर बंजारा समाज का वास्तव्य प्रदेश की सीमाओं पे ज्यादातर होता था इस स्थिथीयों का फायदा उन्हें व्यापार में मिलता था और संघटन की दृष्टी से भी लाभदायक था इसी बात से उनके दुरदृष्टीका अंदाज होता है। |
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सेवालाल के पिताजी रामजी नायक के सुपुत्र भिमा नायक बहुत बड़े व्यापारी थे। उन्हें लगभग भारतीय सभी भाषाओं का ज्ञान था। उनकी कुल संपत्ती में 4000 से 5000 तक गाय और बैलों का समावेश था। जिसका उपयोग अनाज की यातायात के लिए किया जाता था और वो 52 तांडों के (गांव) के नायक थे। उन्हें नायकडा कहा जाता था (1 गांव का नायक और 52 गांव के नायकडा) एक गांव (तांडे की) की आबादी लगभग 500 के आसपास होती थी। हर तांडे के लिये एक पुरुष और एक स्त्री गोर धर्म प्रचारक के रुप में काम करते थे, उन्हें बावन्न (52) भेरु (पुरुष) और 64 जोगंणी (स्त्री) कहते थे। इन 52 भेरु और 64 जोगणी का एक संघ होता था। और ये मुख्य नायकडा के अंतर्गत कायम करते थे। इसीलिए संत सेवालाल के दादाजी को रामसंघ नायक कहते थे। (52 तांडो का संघप्रमुख) भिमा नायक भी 52 तांडों के संघप्रमुख थे। ऐतिहासिक दस्तावेज से पता चला है की, भिमा नायक ने अंग्रेजों के साथ मुल्य 2 लाख रु. का व्यापारी करार किया था। (अनाज पहुचाने का करार) इस बात से साफ पता चलाता है की, सेवालाल का जन्म वैभव सपन्न घर में हुआ था। इसके अलावा उनके जन्म को लेकर काफी सारी मिथ्या कहानियाँ सुनने में आती है। सेवालाल की माँ का नाम धरमणी था जो कि जयराम बड़तीया (सुवर्ण कप्पा, कर्नाटक) की सुपुत्री थी। भिमा नायक के विवाह के उपरांत लगभग 12 साल तक उन्हें कोई संतान नहीं थी बाद में मरीया माँ के आराधना के बाद संत सेवालाल का जन्म हुआ ऐसी अस्था है। |
सेवालाल के पिताजी रामजी नायक के सुपुत्र भिमा नायक बहुत बड़े व्यापारी थे। उन्हें लगभग भारतीय सभी भाषाओं का ज्ञान था। उनकी कुल संपत्ती में 4000 से 5000 तक गाय और बैलों का समावेश था। जिसका उपयोग अनाज की यातायात के लिए किया जाता था और वो 52 तांडों के (गांव) के नायक थे। उन्हें नायकडा कहा जाता था (1 गांव का नायक और 52 गांव के नायकडा) एक गांव (तांडे की) की आबादी लगभग 500 के आसपास होती थी। हर तांडे के लिये एक पुरुष और एक स्त्री गोर धर्म प्रचारक के रुप में काम करते थे, उन्हें बावन्न (52) भेरु (पुरुष) और 64 जोगंणी (स्त्री) कहते थे। इन 52 भेरु और 64 जोगणी का एक संघ होता था। और ये मुख्य नायकडा के अंतर्गत कायम करते थे। इसीलिए संत सेवालाल के दादाजी को रामसंघ नायक कहते थे। (52 तांडो का संघप्रमुख) भिमा नायक भी 52 तांडों के संघप्रमुख थे। ऐतिहासिक दस्तावेज से पता चला है की, भिमा नायक ने अंग्रेजों के साथ मुल्य 2 लाख रु. का व्यापारी करार किया था। (अनाज पहुचाने का करार) इस बात से साफ पता चलाता है की, सेवालाल का जन्म वैभव सपन्न घर में हुआ था। इसके अलावा उनके जन्म को लेकर काफी सारी मिथ्या कहानियाँ सुनने में आती है। सेवालाल की माँ का नाम धरमणी था जो कि जयराम बड़तीया (सुवर्ण कप्पा, कर्नाटक) की सुपुत्री थी। भिमा नायक के विवाह के उपरांत लगभग 12 साल तक उन्हें कोई संतान नहीं थी बाद में मरीया माँ के आराधना के बाद संत सेवालाल का जन्म हुआ ऐसी अस्था है। |
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संघ के पारंपारिक निती के नुसार स्वरक्षा और अनाज की रक्षा के लिए यौद्धाओं की निर्मीती की जाती थी। उसी को ध्यान में रखते हुए सेवालाल ने 7 संघटनायकों का एक संघटन बनाया जिसमें खुद सेवालाल, उनके तीन भाई, हापा बदु, पुरा और धर्मी, ढाका, रामसंग साथ भीया थे। इसी संघटन को बाद में 6 संघ नायकों ने अपनाया। इस तरह 13 लोगों का एक महासंघ बना? जो 700 तांडो का नेतृत्व करता था जिसमें मध्यभारत, दक्षिणभारत का समावेश था। मध्यभारत के व्यापारी भगवानदारस वडतीया कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) और दक्षिभारत के व्यापारी जंगी, भंगी भुकीया (कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) सेवालाल के संघ में समाविष्ट हुए। 17 वी शताब्दी की राजकीय स्थिती के अनुसार हम यह कह सकते है, की, अंग्रेजी सत्ता का प्रभाव और ताकत दिन ब दिन बढ़ता जा रहा था और भारतीय राजाओं की व्यवस्था कमजोर होती जा रही थी। अंग्रेजी हुकूमत का गोर बंजारा व्यापारी पर राजाओं को रसद पहुंचाने के खिलाफ दबाव बढ़ते जा रहा था। और अंग्रेज प्रभावित इलाकों में गोर बंजारा व्यापारीयों से कर वसुली का फर्माण निकाले जा रहे थे जो की, गोर बंजारा के व्यापारी नियमों के खिलाफ था।इस कर वसुली के खिलाफ प्रस्ताव लेकर सेवालाल अपने सभी संघ नायकों के साथ निजाम से मिलने गये। अंग्रेजी हुकूमत के डर से निजाम ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया इसके मद्देनजर सेवालाल ने निजाम के विरुद्ध युद्ध का ऐलान किया। फिर (बंजारा हिल) हैद्राबाद में युद्ध हुआ और परिणामस्वरुप निजाम ने सेवालाल की सभी शर्ते मंजुर की और भारत के अन्य राज्यों के करप्रणाली के लिए दिल्ली के बादशाह गुलाम खान को मिलने की सलाह दी। सेवालाल ने निजाम की सलाह मान ली और निजाम की ओर से दिये हुए सम्मान को स्वीकार किया। सम्मान के तौर पर निजाम ने ताम्रपत्र, तलवार और भेटवस्तू दी। पोहरागढ मंदिर (महाराष्ट्र राज्य) में आज भी ये भेटवस्तुयाँ मौजूद है। |
संघ के पारंपारिक निती के नुसार स्वरक्षा और अनाज की रक्षा के लिए यौद्धाओं की निर्मीती की जाती थी। उसी को ध्यान में रखते हुए सेवालाल ने 7 संघटनायकों का एक संघटन बनाया जिसमें खुद सेवालाल, उनके तीन भाई, हापा बदु, पुरा और धर्मी, ढाका, रामसंग साथ भीया थे। इसी संघटन को बाद में 6 संघ नायकों ने अपनाया। इस तरह 13 लोगों का एक महासंघ बना? जो 700 तांडो का नेतृत्व करता था जिसमें मध्यभारत, दक्षिणभारत का समावेश था। मध्यभारत के व्यापारी भगवानदारस वडतीया कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) और दक्षिभारत के व्यापारी जंगी, भंगी भुकीया (कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) सेवालाल के संघ में समाविष्ट हुए। 17 वी शताब्दी की राजकीय स्थिती के अनुसार हम यह कह सकते है, की, अंग्रेजी सत्ता का प्रभाव और ताकत दिन ब दिन बढ़ता जा रहा था और भारतीय राजाओं की व्यवस्था कमजोर होती जा रही थी। अंग्रेजी हुकूमत का गोर बंजारा व्यापारी पर राजाओं को रसद पहुंचाने के खिलाफ दबाव बढ़ते जा रहा था। और अंग्रेज प्रभावित इलाकों में गोर बंजारा व्यापारीयों से कर वसुली का फर्माण निकाले जा रहे थे जो की, गोर बंजारा के व्यापारी नियमों के खिलाफ था।इस कर वसुली के खिलाफ प्रस्ताव लेकर सेवालाल अपने सभी संघ नायकों के साथ निजाम से मिलने गये। अंग्रेजी हुकूमत के डर से निजाम ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया इसके मद्देनजर सेवालाल ने निजाम के विरुद्ध युद्ध का ऐलान किया। फिर (बंजारा हिल) हैद्राबाद में युद्ध हुआ और परिणामस्वरुप निजाम ने सेवालाल की सभी शर्ते मंजुर की और भारत के अन्य राज्यों के करप्रणाली के लिए दिल्ली के बादशाह गुलाम खान को मिलने की सलाह दी। सेवालाल ने निजाम की सलाह मान ली और निजाम की ओर से दिये हुए सम्मान को स्वीकार किया। सम्मान के तौर पर निजाम ने ताम्रपत्र, तलवार और भेटवस्तू दी। पोहरागढ मंदिर (महाराष्ट्र राज्य) में आज भी ये भेटवस्तुयाँ मौजूद है। |
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भारत की सबसे सभ्य और प्राचीन संस्कृती सिंधु संस्कृती को माना गया है। इसी संस्कृती से जुड़ी हुई गोर- बंजारा संस्कृती है और इस गोर बंजारा समाज का वास्तव पुरी दुनियाभर में है और उन्हें अलग अलग प्रांत में अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे महाराष्ट्र में बंजारा, कर्नाटक में लमाणी, आंध्र में लंबाडा पंजाब में बाजीगर, उत्तर प्रदेश में नायक समाज और बाहरी दुनिया में राणी नाम से जाने जाते है। इस समाज के इ.स.पुर्व काल में बौद्ध और महावीर के भी पहले पीठागौर नाम के गौरधर्म के संस्थापक हुए है। इसके बाद ग्यारवी शताब्दी में दागुरु नामके द्वितीय धर्मगुरु होके गये है। द्वितीय धर्मगुरु ने शिक्षा का महत्व और मंत्र और समाज को दिया। वो मंत्र गोरबोली में शिकच शिकावच शिके राज धडावच, शिके जेरी साजपोळी, घीयानपोळी, इसका मतलब जो समाज शिक्षा प्राप्त करके अपने समाज को शिक्षीत करता है। वहीं समाज राज वैभव प्राप्त कर सकता है इसका उदा. पीठागौरने चंद्रगुप्त मौर्य, हर्षवर्धन जैसे महान विराट राजा को जन्म दिया। उसी तरह दागुरु के विचारों ने आला उदल, राजा गोपीचंद जैसे महान योद्धा वो को निर्मीत किया। इसी 12 वीं शताब्दी से लेकर 17 वी शताब्दी तक गौर बंजारा समान में बड़े बड़े योद्धा होके गये। जैसे महाराणा प्रताप के सेनापती जयमल फंतीहा और राजा रतनसिंग के सर सेनापती और राणी रुपमती के सगे भाई गोर बंजारा गौरा बादल। 16 वी और 17 वी शताब्दी के गौर बंजारा समाज के महान व्यापारी, उत्तर में लकीशों बणजारा और दक्षिण में जंगी, भंगी (भुकीया) और मध्यभारत के भगवानदारस वडतीया थे। ये सभी व्यापारी भारत के बड़े राजा-महाराजाओं को रसद (अनाज) पहुंचाने का काम करते थे। लेकिन आम जनता की फिकर इस गौर बंजारा समाज के संत सेवाला महाराज को थी, इसलिए उन्होंने आम जनता की सेवा और भलाई के लिए अपने विचारों का संघटन निर्माण किया और उनका नेतृत्व भी किया, उसी महान सतगुरु, समाजसुधारक, क्रांतीकारी, अर्थतज्ञ, आयुर्वेदाचारी और बहुजनों के (कोर-गोर) के धर्मगुरु संत सेवालाल का जन्म 15 फरवरी 1739 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुथ्थी तालुकास्थित गोलाल डोडी गांव में हुआ। अभी वो गांव सेवागड के नाम से जाना जाता है। |
भारत की सबसे सभ्य और प्राचीन संस्कृती सिंधु संस्कृती को माना गया है। इसी संस्कृती से जुड़ी हुई गोर- बंजारा संस्कृती है और इस गोर बंजारा समाज का वास्तव पुरी दुनियाभर में है और उन्हें अलग अलग प्रांत में अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे महाराष्ट्र में बंजारा, कर्नाटक में लमाणी, आंध्र में लंबाडा पंजाब में बाजीगर, उत्तर प्रदेश में नायक समाज और बाहरी दुनिया में राणी नाम से जाने जाते है। इस समाज के इ.स.पुर्व काल में बौद्ध और महावीर के भी पहले पीठागौर नाम के गौरधर्म के संस्थापक हुए है। इसके बाद ग्यारवी शताब्दी में दागुरु नामके द्वितीय धर्मगुरु होके गये है। द्वितीय धर्मगुरु ने शिक्षा का महत्व और मंत्र और समाज को दिया। वो मंत्र गोरबोली में शिकच शिकावच शिके राज धडावच, शिके जेरी साजपोळी, घीयानपोळी, इसका मतलब जो समाज शिक्षा प्राप्त करके अपने समाज को शिक्षीत करता है। वहीं समाज राज वैभव प्राप्त कर सकता है इसका उदा. पीठागौरने चंद्रगुप्त मौर्य, हर्षवर्धन जैसे महान विराट राजा को जन्म दिया। उसी तरह दागुरु के विचारों ने आला उदल, राजा गोपीचंद जैसे महान योद्धा वो को निर्मीत किया। इसी 12 वीं शताब्दी से लेकर 17 वी शताब्दी तक गौर बंजारा समान में बड़े बड़े योद्धा होके गये। जैसे महाराणा प्रताप के सेनापती जयमल फंतीहा और राजा रतनसिंग के सर सेनापती और राणी रुपमती के सगे भाई गोर बंजारा गौरा बादल। 16 वी और 17 वी शताब्दी के गौर बंजारा समाज के महान व्यापारी, उत्तर में लकीशों बणजारा और दक्षिण में जंगी, भंगी (भुकीया) और मध्यभारत के भगवानदारस वडतीया थे। ये सभी व्यापारी भारत के बड़े राजा-महाराजाओं को रसद (अनाज) पहुंचाने का काम करते थे। लेकिन आम जनता की फिकर इस गौर बंजारा समाज के संत सेवाला महाराज को थी, इसलिए उन्होंने आम जनता की सेवा और भलाई के लिए अपने विचारों का संघटन निर्माण किया और उनका नेतृत्व भी किया, उसी महान सतगुरु, समाजसुधारक, क्रांतीकारी, अर्थतज्ञ, आयुर्वेदाचारी और बहुजनों के (कोर-गोर) के धर्मगुरु संत सेवालाल का जन्म 15 फरवरी 1739 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुथ्थी तालुकास्थित गोलाल डोडी गांव में हुआ। अभी वो गांव सेवागड के नाम से जाना जाता है। भौगोलिक और ऐतिहासिक जानकारी होने के कारण गोर बंजारा समाज का वास्तव्य प्रदेश की सीमाओं पे ज्यादातर होता था इस स्थिथीयों का फायदा उन्हें व्यापार में मिलता था और संघटन की दृष्टी से भी लाभदायक था इसी बात से उनके दुरदृष्टीका अंदाज होता है। |
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सेवालाल के पिताजी रामजी नायक के सुपुत्र भिमा नायक बहुत बड़े व्यापारी थे। उन्हें लगभग भारतीय सभी भाषाओं का ज्ञान था। उनकी कुल संपत्ती में 4000 से 5000 तक गाय और बैलों का समावेश था। जिसका उपयोग अनाज की यातायात के लिए किया जाता था और वो 52 तांडों के (गांव) के नायक थे। उन्हें नायकडा कहा जाता था (1 गांव का नायक और 52 गांव के नायकडा) एक गांव (तांडे की) की आबादी लगभग 500 के आसपास होती थी। हर तांडे के लिये एक पुरुष और एक स्त्री गोर धर्म प्रचारक के रुप में काम करते थे, उन्हें बावन्न (52) भेरु (पुरुष) और 64 जोगंणी (स्त्री) कहते थे। इन 52 भेरु और 64 जोगणी का एक संघ होता था। और ये मुख्य नायकडा के अंतर्गत कायम करते थे। इसीलिए संत सेवालाल के दादाजी को रामसंघ नायक कहते थे। (52 तांडो का संघप्रमुख) भिमा नायक भी 52 तांडों के संघप्रमुख थे। ऐतिहासिक दस्तावेज से पता चला है की, भिमा नायक ने अंग्रेजों के साथ मुल्य 2 लाख रु. का व्यापारी करार किया था। (अनाज पहुचाने का करार) इस बात से साफ पता चलाता है की, सेवालाल का जन्म वैभव सपन्न घर में हुआ था। इसके अलावा उनके जन्म को लेकर काफी सारी मिथ्या कहानियाँ सुनने में आती है। सेवालाल की माँ का नाम धरमणी था जो कि जयराम बड़तीया (सुवर्ण कप्पा, कर्नाटक) की सुपुत्री थी। भिमा नायक के विवाह के उपरांत लगभग 12 साल तक उन्हें कोई संतान नहीं थी बाद में मरीया माँ के आराधना के बाद संत सेवालाल का जन्म हुआ ऐसी अस्था है। |
सेवालाल के पिताजी रामजी नायक के सुपुत्र भिमा नायक बहुत बड़े व्यापारी थे। उन्हें लगभग भारतीय सभी भाषाओं का ज्ञान था। उनकी कुल संपत्ती में 4000 से 5000 तक गाय और बैलों का समावेश था। जिसका उपयोग अनाज की यातायात के लिए किया जाता था और वो 52 तांडों के (गांव) के नायक थे। उन्हें नायकडा कहा जाता था (1 गांव का नायक और 52 गांव के नायकडा) एक गांव (तांडे की) की आबादी लगभग 500 के आसपास होती थी। हर तांडे के लिये एक पुरुष और एक स्त्री गोर धर्म प्रचारक के रुप में काम करते थे, उन्हें बावन्न (52) भेरु (पुरुष) और 64 जोगंणी (स्त्री) कहते थे। इन 52 भेरु और 64 जोगणी का एक संघ होता था। और ये मुख्य नायकडा के अंतर्गत कायम करते थे। इसीलिए संत सेवालाल के दादाजी को रामसंघ नायक कहते थे। (52 तांडो का संघप्रमुख) भिमा नायक भी 52 तांडों के संघप्रमुख थे। ऐतिहासिक दस्तावेज से पता चला है की, भिमा नायक ने अंग्रेजों के साथ मुल्य 2 लाख रु. का व्यापारी करार किया था। (अनाज पहुचाने का करार) इस बात से साफ पता चलाता है की, सेवालाल का जन्म वैभव सपन्न घर में हुआ था। इसके अलावा उनके जन्म को लेकर काफी सारी मिथ्या कहानियाँ सुनने में आती है। सेवालाल की माँ का नाम धरमणी था जो कि जयराम बड़तीया (सुवर्ण कप्पा, कर्नाटक) की सुपुत्री थी। भिमा नायक के विवाह के उपरांत लगभग 12 साल तक उन्हें कोई संतान नहीं थी बाद में मरीया माँ के आराधना के बाद संत सेवालाल का जन्म हुआ ऐसी अस्था है। |
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संघ के पारंपारिक निती के नुसार स्वरक्षा और अनाज की रक्षा के लिए यौद्धाओं की निर्मीती की जाती थी। उसी को ध्यान में रखते हुए सेवालाल ने 7 संघटनायकों का एक संघटन बनाया जिसमें खुद सेवालाल, उनके तीन भाई, हापा बदु, पुरा और धर्मी, ढाका, रामसंग साथ भीया थे। इसी संघटन को बाद में 6 संघ नायकों ने अपनाया। इस तरह 13 लोगों का एक महासंघ बना? जो 700 तांडो का नेतृत्व करता था जिसमें मध्यभारत, दक्षिणभारत का समावेश था। मध्यभारत के व्यापारी भगवानदारस वडतीया कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) और दक्षिभारत के व्यापारी जंगी, भंगी भुकीया (कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) सेवालाल के संघ में समाविष्ट हुए। 17 वी शताब्दी की राजकीय स्थिती के अनुसार हम यह कह सकते है, की, अंग्रेजी सत्ता का प्रभाव और ताकत दिन ब दिन |
संघ के पारंपारिक निती के नुसार स्वरक्षा और अनाज की रक्षा के लिए यौद्धाओं की निर्मीती की जाती थी। उसी को ध्यान में रखते हुए सेवालाल ने 7 संघटनायकों का एक संघटन बनाया जिसमें खुद सेवालाल, उनके तीन भाई, हापा बदु, पुरा और धर्मी, ढाका, रामसंग साथ भीया थे। इसी संघटन को बाद में 6 संघ नायकों ने अपनाया। इस तरह 13 लोगों का एक महासंघ बना? जो 700 तांडो का नेतृत्व करता था जिसमें मध्यभारत, दक्षिणभारत का समावेश था। मध्यभारत के व्यापारी भगवानदारस वडतीया कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) और दक्षिभारत के व्यापारी जंगी, भंगी भुकीया (कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) सेवालाल के संघ में समाविष्ट हुए। 17 वी शताब्दी की राजकीय स्थिती के अनुसार हम यह कह सकते है, की, अंग्रेजी सत्ता का प्रभाव और ताकत दिन ब दिन |
०७:५४, १७ ऑगस्ट २०१६ ची आवृत्ती
या लेखातील मजकूर मराठी विकिपीडियाच्या विश्वकोशीय लेखनशैलीस अनुसरून नाही. आपण हा लेख तपासून याच्या पुनर्लेखनास मदत करू शकता.
नवीन सदस्यांना मार्गदर्शन हा साचा अशुद्धलेखन, अविश्वकोशीय मजकूर अथवा मजकुरात अविश्वकोशीय लेखनशैली व विना-संदर्भ लेखन आढळल्यास वापरला जातो. |
बंजारा गोत्र आणि त्यांची संख्या
चव्हाण- ०६ आणि निसर्गात रुतुची संख्या ०६
- पवार- १२ आणि
वर्षाचे महिने १२
- राठोड- २७ आणि
वर्षामध्ये २७ नक्षत्र जाधव- ५२ आणि वर्षाचे ५२ आठवडे
- आडे- ०७ आणि
वर्षामध्ये फक्त ०७ वार[दिवस]
यावरुन बंजारा समाज किती निसर्गप्रियआहे हे दिसते. या गोत्रांचा अभ्यास होणे गरजेचे आह बंजारा समाज हा विविध जागेवर पसरलेला समाज आहे बंजारा समाजाचा उल्लेख हा अतिप्रचिन असून समाज प्रेरित आहे बंजारा समाजात विविध रूढी,परंपरा ,सन,उत्सव पाहायला मिळतात ह्या समाजात गोर, लमानि,लाभानि,लंबाड़ा बंजारा आदि गोत्र आहेत .हां बंजारा समाज गाय पूजक असल्यामुळे या समाजाला गोर ऎसे म्हटले जाते.
बंजारा हा समाज लमानी, लम्बाडि ,बंजारा लमानी,अशा विविध नावानी ओळखल्या जातो भारत की सबसे सभ्य और प्राचीन संस्कृती सिंधु संस्कृती को माना गया है। इसी संस्कृती से जुड़ी हुई गोर- बंजारा संस्कृती है और इस गोर बंजारा समाज का वास्तव पुरी दुनियाभर में है और उन्हें अलग अलग प्रांत में अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे महाराष्ट्र में बंजारा, कर्नाटक में लमाणी, आंध्र में लंबाडा पंजाब में बाजीगर, उत्तर प्रदेश में नायक समाज और बाहरी दुनिया में राणी नाम से जाने जाते है। इस समाज के इ.स.पुर्व काल में बौद्ध और महावीर के भी पहले पीठागौर नाम के गौरधर्म के संस्थापक हुए है। इसके बाद ग्यारवी शताब्दी में दागुरु नामके द्वितीय धर्मगुरु होके गये है। द्वितीय धर्मगुरु ने शिक्षा का महत्व और मंत्र और समाज को दिया। वो मंत्र गोरबोली में शिकच शिकावच शिके राज धडावच, शिके जेरी साजपोळी, घीयानपोळी, इसका मतलब जो समाज शिक्षा प्राप्त करके अपने समाज को शिक्षीत करता है। वहीं समाज राज वैभव प्राप्त कर सकता है इसका उदा. पीठागौरने चंद्रगुप्त मौर्य, हर्षवर्धन जैसे महान विराट राजा को जन्म दिया। उसी तरह दागुरु के विचारों ने आला उदल, राजा गोपीचंद जैसे महान योद्धा वो को निर्मीत किया। इसी 12 वीं शताब्दी से लेकर 17 वी शताब्दी तक गौर बंजारा समान में बड़े बड़े योद्धा होके गये। जैसे महाराणा प्रताप के सेनापती जयमल फंतीहा और राजा रतनसिंग के सर सेनापती और राणी रुपमती के सगे भाई गोर बंजारा गौरा बादल। 16 वी और 17 वी शताब्दी के गौर बंजारा समाज के महान व्यापारी, उत्तर में लकीशों बणजारा और दक्षिण में जंगी, भंगी (भुकीया) और मध्यभारत के भगवानदारस वडतीया थे। ये सभी व्यापारी भारत के बड़े राजा-महाराजाओं को रसद (अनाज) पहुंचाने का काम करते थे। लेकिन आम जनता की फिकर इस गौर बंजारा समाज के संत सेवाला महाराज को थी, इसलिए उन्होंने आम जनता की सेवा और भलाई के लिए अपने विचारों का संघटन निर्माण किया और उनका नेतृत्व भी किया, उसी महान सतगुरु, समाजसुधारक, क्रांतीकारी, अर्थतज्ञ, आयुर्वेदाचारी और बहुजनों के (कोर-गोर) के धर्मगुरु संत सेवालाल का जन्म 15 फरवरी 1739 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुथ्थी तालुकास्थित गोलाल डोडी गांव में हुआ। अभी वो गांव सेवागड के नाम से जाना जाता है। भौगोलिक और ऐतिहासिक जानकारी होने के कारण गोर बंजारा समाज का वास्तव्य प्रदेश की सीमाओं पे ज्यादातर होता था इस स्थिथीयों का फायदा उन्हें व्यापार में मिलता था और संघटन की दृष्टी से भी लाभदायक था इसी बात से उनके दुरदृष्टीका अंदाज होता है। सेवालाल के पिताजी रामजी नायक के सुपुत्र भिमा नायक बहुत बड़े व्यापारी थे। उन्हें लगभग भारतीय सभी भाषाओं का ज्ञान था। उनकी कुल संपत्ती में 4000 से 5000 तक गाय और बैलों का समावेश था। जिसका उपयोग अनाज की यातायात के लिए किया जाता था और वो 52 तांडों के (गांव) के नायक थे। उन्हें नायकडा कहा जाता था (1 गांव का नायक और 52 गांव के नायकडा) एक गांव (तांडे की) की आबादी लगभग 500 के आसपास होती थी। हर तांडे के लिये एक पुरुष और एक स्त्री गोर धर्म प्रचारक के रुप में काम करते थे, उन्हें बावन्न (52) भेरु (पुरुष) और 64 जोगंणी (स्त्री) कहते थे। इन 52 भेरु और 64 जोगणी का एक संघ होता था। और ये मुख्य नायकडा के अंतर्गत कायम करते थे। इसीलिए संत सेवालाल के दादाजी को रामसंघ नायक कहते थे। (52 तांडो का संघप्रमुख) भिमा नायक भी 52 तांडों के संघप्रमुख थे। ऐतिहासिक दस्तावेज से पता चला है की, भिमा नायक ने अंग्रेजों के साथ मुल्य 2 लाख रु. का व्यापारी करार किया था। (अनाज पहुचाने का करार) इस बात से साफ पता चलाता है की, सेवालाल का जन्म वैभव सपन्न घर में हुआ था। इसके अलावा उनके जन्म को लेकर काफी सारी मिथ्या कहानियाँ सुनने में आती है। सेवालाल की माँ का नाम धरमणी था जो कि जयराम बड़तीया (सुवर्ण कप्पा, कर्नाटक) की सुपुत्री थी। भिमा नायक के विवाह के उपरांत लगभग 12 साल तक उन्हें कोई संतान नहीं थी बाद में मरीया माँ के आराधना के बाद संत सेवालाल का जन्म हुआ ऐसी अस्था है। संघ के पारंपारिक निती के नुसार स्वरक्षा और अनाज की रक्षा के लिए यौद्धाओं की निर्मीती की जाती थी। उसी को ध्यान में रखते हुए सेवालाल ने 7 संघटनायकों का एक संघटन बनाया जिसमें खुद सेवालाल, उनके तीन भाई, हापा बदु, पुरा और धर्मी, ढाका, रामसंग साथ भीया थे। इसी संघटन को बाद में 6 संघ नायकों ने अपनाया। इस तरह 13 लोगों का एक महासंघ बना? जो 700 तांडो का नेतृत्व करता था जिसमें मध्यभारत, दक्षिणभारत का समावेश था। मध्यभारत के व्यापारी भगवानदारस वडतीया कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) और दक्षिभारत के व्यापारी जंगी, भंगी भुकीया (कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) सेवालाल के संघ में समाविष्ट हुए। 17 वी शताब्दी की राजकीय स्थिती के अनुसार हम यह कह सकते है, की, अंग्रेजी सत्ता का प्रभाव और ताकत दिन ब दिन बढ़ता जा रहा था और भारतीय राजाओं की व्यवस्था कमजोर होती जा रही थी। अंग्रेजी हुकूमत का गोर बंजारा व्यापारी पर राजाओं को रसद पहुंचाने के खिलाफ दबाव बढ़ते जा रहा था। और अंग्रेज प्रभावित इलाकों में गोर बंजारा व्यापारीयों से कर वसुली का फर्माण निकाले जा रहे थे जो की, गोर बंजारा के व्यापारी नियमों के खिलाफ था।इस कर वसुली के खिलाफ प्रस्ताव लेकर सेवालाल अपने सभी संघ नायकों के साथ निजाम से मिलने गये। अंग्रेजी हुकूमत के डर से निजाम ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया इसके मद्देनजर सेवालाल ने निजाम के विरुद्ध युद्ध का ऐलान किया। फिर (बंजारा हिल) हैद्राबाद में युद्ध हुआ और परिणामस्वरुप निजाम ने सेवालाल की सभी शर्ते मंजुर की और भारत के अन्य राज्यों के करप्रणाली के लिए दिल्ली के बादशाह गुलाम खान को मिलने की सलाह दी। सेवालाल ने निजाम की सलाह मान ली और निजाम की ओर से दिये हुए सम्मान को स्वीकार किया। सम्मान के तौर पर निजाम ने ताम्रपत्र, तलवार और भेटवस्तू दी। पोहरागढ मंदिर (महाराष्ट्र राज्य) में आज भी ये भेटवस्तुयाँ मौजूद है। दिल्ली के बादशाह गुलाम खान ने इस प्रस्ताव को नामंजुर किया, परिणाम स्वरुप सेवालाल ने युद्ध का ऐलान कीया, गुलाम खान के 25000 सैनिकों का मुकाबला सेवालाल के 900 यौद्धाओं ने किया। गुलाम खान की भारी हार हुई इतिहासकारों ने इस युद्ध का जिक्र कभी नहीं किया। गुलाम खान ने करप्रणाली को माफ करने को मंजुर किया। व्यापार दृष्टीकोन से सेवालाल की ये बहुत बड़ी राजनैतिक जीत थी। इस जीत के चलते सेवालाल का नाम पुरे भारत वर्ष में प्रसिद्ध हुआ। लाहोर के गौरबंजारा (ट्रेडर्स) ने सेवालाल को सम्मानित किया। जयपुर (राजस्थान) के बंजारा व्यापारी और बहुजन लोगों की पुकार पर सेवालाल ने भुमिया नामक दहशतग्रस्त का शिरच्छेद किया और राजस्थानवासियों को भुमिया से मुक्ती दिलाई। आज भी इसी निशानी के तौरपर जयपुर में सवाई मानसिंग हॉस्पीटल में सेवालाल का मंदीर है। दिल्लीस्थित रायसिना हिल लकीशों बंजारा ने सेवालाल के स्वागत में बनाई हुई छत्री नेहरु प्लॅनिटोरियम, नई दिल्ली में मौजूद है। इसी तरह मुंबई के पास सेवानामक गांव में जहापर अभी जवाहरलाल नेहरु पोर्ट ट्रस्ट है वहां पर 17 वीं शताब्दी में सेवालाल पोर्ट हुआ करता था। वैसे ही धरमतर (सेवालाल के सहयोगी) नाम का पोर्ट रायगड जिल्हे में पेण के पास मौजुद है। उसी तरह मुंबई स्थित भाऊचा भी ना होते हुए वो सेवाभाया का धक्का है। इस जगह पर पोर्तुगीज का जहाज फस गया था उसे सेवालाल ने निकाला, फलस्वरुप उन्हें मोतीयों की माला (इटालियन पर्ल्स) दिया गया, इसी वजह से सेवालाल मोतीवाळो के नाम से भी जाने जाते है। रायगड जिल्हे में पेण के पास गागोदे नामक गांव में सेवालाल का व्यापारी केंद्र था वहां पर आज भी उनके नाम का मंदीर मौजूद है। सेवालाल बहुत बड़े व्यापारी, यौद्धा, संगटक, अर्थतज्ञ तो थे ही लेकिन उसके साथ वे बहुत बड़े समाजसुधारक थे। सेवालाल की ताकत और ग्यान का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि जो भविष्यवाणीयां सेवालालने भारत की सामाजिक और आर्थिक और नैसर्गित स्थिती को लेकर कहीं थी वो सब बाते आज 250 साल बाद सच हो रही है।: कुछ वर्षो में विलुप्त हो जायेगी बंजारा संस्कृति - बंजारा समाज अपनी संस्कृति ,,अपना समाज ,,अपनी बस्ती ,,,भाषा और पहनावे को सुरक्षित संरक्षित करने के लिए शीघ्र ही राष्ट्रव्यापी अभियान चलाएगा ,,,यह निर्णय किनवट में आयोजित बंजारा समाज के गोर सेना के प्रतिनिधियों की एक आपात बैठक में लिया गया ,,,,, गोर सेना के राष्ट्रिय अध्यक्ष संदेश चव्हाण ने बताया के बंजारा समाज राजस्थान की संस्कृति में जन्मा ,,पला ,,बढ़ा है लेकिन राजस्थान की सरकारों की दोहरी नीतियों के चलते बंजारा समाज अपने संरक्षण के लिए पलायन करता गया और महाराष्ट्र ,,आंध्रा ,,कर्नाटक ,,मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों में स्थापित हुआ है ,संदेश चव्हाण ने बताया के राजस्थान में बंजारों की बस्तियों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है ,,उन्होंने अलवर के नीमड़ी गाँव और भीलवाड़ा के ढीकोला क़स्बे में बंजारा बस्ती पर कातिलाना हमला कर आगजनी घटना का पूरा ब्योरा बंजारा समाज के पर्तीिनिधियों के समक्ष पेश किया ,,,,,,,,,,किनवट के भवन में आयोजित बंजारा समाज की बैठक में राजस्थान में लगातार बंजारों पर हो रहे हमलों की घटना पर रोष जताते हुए सरकार के खिलाफ निंदा करते काहा कि ,,,,,,भारत देश के गोर सीकवाडी के विलास ने इस घटना पर गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा के बंजारा समाज को राष्ट्रिय स्तर पर एक होने की ज़रूरत है उन्होंने कहा के देश में बंजारों की भाषा लुप्त हो रही है ,,संस्कृति ,,पहनावा लुप्त हो रहा है और इस समाज को संरक्षित सुरक्षित करने के लिए सरकारों की कोई योजना नहीं है उन्होंने कहा की जबकि वहां बंजारा समाज निगम की स्थापना कर बंजारा संस्कृति के संरक्षण का प्रयास किया गया लेकिन भाजपा के लोगों में बंजारों के पक्ष में कोई विज़न नहीं है सिर्फ वोट मांगने के लिए करते है
“बंजारा समाजाचे विद्यार्थी शिक्षण क्षेत्रात होत आहेत अव्वल” - मित्र हो जय सेवालाल👏
एकेकाळी बंजारा तांड्यातील विद्यार्थी 10 वी किंवा 12 वीला फक्त पास झाले तरी खुप खुश असायचे.पण आजकाल अस झाले कि मुलांना खरोखर शिक्षण मिळायला सुरुवात झाली आहे.भलेही शिक्षणाला खुप खर्च वाढलये गरीब विद्यार्थ्यांना चांगल्या शाळेत प्रवेशासाठी झगडावे लागते पण तो विद्यार्थी त्या चांगल्या शाळेत प्रवेश घेउन चांगल्या प्रकारे मार्क मिळऊन पास होतोय हि चांगली गोष्ट आहे.मित्र हो आपल्याला माहित आहे कि सरकारी नौकरी मिळत नाही तर समोरच भवीष्य काय असायला पाहिजे आणि कशा प्रकारे व कोनते शिक्षण शिकायला पाहिजे.ते आपण चांगल्या मार्गदर्शन करनाऱ्या बाधवांशी सल्ला घेऊन समोरील वाटचालीला सुरवात करावी.पालकांना कळकळची विनंती आहे आपण आपल्या मुलानां चांगल्या प्रकारे मार्गदर्श करावे व त्यांना आय टी क्षेत्रात प्रवेश करावे आणि आपल्याला भविष्यात कुठेही नौकरी मिळेल,Polytechnic,ITI,mechanical eng.civil eng.automobile eng.chemical engineering,computer engineering,अस्या प्रकारचे क्षेत्र निवडावेत व आपल्या पुढिल भविष्यात गरजु विद्यार्थ्यांना मार्गदर्शन करावे.कारण मार्गदर्शक विना भविष्य नाही.आपल्या तांड्यातील सर्व पालक व विद्यार्थ्यांचा मनोबल वाढेल ते क्षेत्र निवडुन शिक्षण घ्यावे.बंजारा समाजाच्या तांड्या मध्ये सर्वात हुशार मुले आहेत पण त्यांना चांगले मार्गदर्शक मिळाले नाही म्हणुन ते आज बेकारीचे दिवस काढत आहे .मित्र हो चांगल्या गोष्टी आपल्याला माहित असेलतर बिंधास्त पणे समोरून जाऊन त्या गरीब विद्यार्थ्यांना सांगावे व त्याना सरळ रस्ता कुठला व अवघड रस्ता कुठला आहे ते सांगावे..कारण 10वी पास होणारा मुलगा खुपच समजदार असेल तस नाही ते पास होण्याच्या धुंदीत स्वताच्या भविष्याची हडबडुन जाऊन क्षेत्र निवडतात.व समोरील भविष्य त्यांचा समोर न जाता कुठेतरी अडकळतो तस न होता.त्यांना न हडबडता क्षेत्र निवडायला �
भारत की सबसे सभ्य और प्राचीन संस्कृती सिंधु संस्कृती को माना गया है। इसी संस्कृती से जुड़ी हुई गोर- बंजारा संस्कृती है और इस गोर बंजारा समाज का वास्तव पुरी दुनियाभर में है और उन्हें अलग अलग प्रांत में अलग अलग नाम से जाना जाता है। जैसे महाराष्ट्र में बंजारा, कर्नाटक में लमाणी, आंध्र में लंबाडा पंजाब में बाजीगर, उत्तर प्रदेश में नायक समाज और बाहरी दुनिया में राणी नाम से जाने जाते है। इस समाज के इ.स.पुर्व काल में बौद्ध और महावीर के भी पहले पीठागौर नाम के गौरधर्म के संस्थापक हुए है। इसके बाद ग्यारवी शताब्दी में दागुरु नामके द्वितीय धर्मगुरु होके गये है। द्वितीय धर्मगुरु ने शिक्षा का महत्व और मंत्र और समाज को दिया। वो मंत्र गोरबोली में शिकच शिकावच शिके राज धडावच, शिके जेरी साजपोळी, घीयानपोळी, इसका मतलब जो समाज शिक्षा प्राप्त करके अपने समाज को शिक्षीत करता है। वहीं समाज राज वैभव प्राप्त कर सकता है इसका उदा. पीठागौरने चंद्रगुप्त मौर्य, हर्षवर्धन जैसे महान विराट राजा को जन्म दिया। उसी तरह दागुरु के विचारों ने आला उदल, राजा गोपीचंद जैसे महान योद्धा वो को निर्मीत किया। इसी 12 वीं शताब्दी से लेकर 17 वी शताब्दी तक गौर बंजारा समान में बड़े बड़े योद्धा होके गये। जैसे महाराणा प्रताप के सेनापती जयमल फंतीहा और राजा रतनसिंग के सर सेनापती और राणी रुपमती के सगे भाई गोर बंजारा गौरा बादल। 16 वी और 17 वी शताब्दी के गौर बंजारा समाज के महान व्यापारी, उत्तर में लकीशों बणजारा और दक्षिण में जंगी, भंगी (भुकीया) और मध्यभारत के भगवानदारस वडतीया थे। ये सभी व्यापारी भारत के बड़े राजा-महाराजाओं को रसद (अनाज) पहुंचाने का काम करते थे। लेकिन आम जनता की फिकर इस गौर बंजारा समाज के संत सेवाला महाराज को थी, इसलिए उन्होंने आम जनता की सेवा और भलाई के लिए अपने विचारों का संघटन निर्माण किया और उनका नेतृत्व भी किया, उसी महान सतगुरु, समाजसुधारक, क्रांतीकारी, अर्थतज्ञ, आयुर्वेदाचारी और बहुजनों के (कोर-गोर) के धर्मगुरु संत सेवालाल का जन्म 15 फरवरी 1739 को आंध्रप्रदेश के अनंतपुर जिले के गुथ्थी तालुकास्थित गोलाल डोडी गांव में हुआ। अभी वो गांव सेवागड के नाम से जाना जाता है। भौगोलिक और ऐतिहासिक जानकारी होने के कारण गोर बंजारा समाज का वास्तव्य प्रदेश की सीमाओं पे ज्यादातर होता था इस स्थिथीयों का फायदा उन्हें व्यापार में मिलता था और संघटन की दृष्टी से भी लाभदायक था इसी बात से उनके दुरदृष्टीका अंदाज होता है।
सेवालाल के पिताजी रामजी नायक के सुपुत्र भिमा नायक बहुत बड़े व्यापारी थे। उन्हें लगभग भारतीय सभी भाषाओं का ज्ञान था। उनकी कुल संपत्ती में 4000 से 5000 तक गाय और बैलों का समावेश था। जिसका उपयोग अनाज की यातायात के लिए किया जाता था और वो 52 तांडों के (गांव) के नायक थे। उन्हें नायकडा कहा जाता था (1 गांव का नायक और 52 गांव के नायकडा) एक गांव (तांडे की) की आबादी लगभग 500 के आसपास होती थी। हर तांडे के लिये एक पुरुष और एक स्त्री गोर धर्म प्रचारक के रुप में काम करते थे, उन्हें बावन्न (52) भेरु (पुरुष) और 64 जोगंणी (स्त्री) कहते थे। इन 52 भेरु और 64 जोगणी का एक संघ होता था। और ये मुख्य नायकडा के अंतर्गत कायम करते थे। इसीलिए संत सेवालाल के दादाजी को रामसंघ नायक कहते थे। (52 तांडो का संघप्रमुख) भिमा नायक भी 52 तांडों के संघप्रमुख थे। ऐतिहासिक दस्तावेज से पता चला है की, भिमा नायक ने अंग्रेजों के साथ मुल्य 2 लाख रु. का व्यापारी करार किया था। (अनाज पहुचाने का करार) इस बात से साफ पता चलाता है की, सेवालाल का जन्म वैभव सपन्न घर में हुआ था। इसके अलावा उनके जन्म को लेकर काफी सारी मिथ्या कहानियाँ सुनने में आती है। सेवालाल की माँ का नाम धरमणी था जो कि जयराम बड़तीया (सुवर्ण कप्पा, कर्नाटक) की सुपुत्री थी। भिमा नायक के विवाह के उपरांत लगभग 12 साल तक उन्हें कोई संतान नहीं थी बाद में मरीया माँ के आराधना के बाद संत सेवालाल का जन्म हुआ ऐसी अस्था है।
संघ के पारंपारिक निती के नुसार स्वरक्षा और अनाज की रक्षा के लिए यौद्धाओं की निर्मीती की जाती थी। उसी को ध्यान में रखते हुए सेवालाल ने 7 संघटनायकों का एक संघटन बनाया जिसमें खुद सेवालाल, उनके तीन भाई, हापा बदु, पुरा और धर्मी, ढाका, रामसंग साथ भीया थे। इसी संघटन को बाद में 6 संघ नायकों ने अपनाया। इस तरह 13 लोगों का एक महासंघ बना? जो 700 तांडो का नेतृत्व करता था जिसमें मध्यभारत, दक्षिणभारत का समावेश था। मध्यभारत के व्यापारी भगवानदारस वडतीया कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) और दक्षिभारत के व्यापारी जंगी, भंगी भुकीया (कुलसंपत्ती 2 लाख बैल) सेवालाल के संघ में समाविष्ट हुए। 17 वी शताब्दी की राजकीय स्थिती के अनुसार हम यह कह सकते है, की, अंग्रेजी सत्ता का प्रभाव और ताकत दिन ब दिन
वसंतराराव नाईक विशेष
हरितक्रांतीचे प्रणेते, मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक यांच्या जयंतीनिमित्त कार्याचा आढावा मानवता, न्याय व समतेसाठी झुंज देणारे जे महामानव झाले, त्यात वसंतराव नाईक यांचे अगक्रमाने आहे. हरितक्रांतीचे शिल्पकार व बंजारा समाजाला आधुनिक जगाची ओळख करुन देणा-या तसेच सतत अकरा वर्ष महाराष्ट्राचे मुख्यमंत्री पद भूषविलेल्या दिवंगत मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक यांची सोमवार दि. 1 जुलै रोजी 100 वी जयंती सर्वत्र विविध कार्यक्रमाने साजरी केली जात आहे. हरित क्रांतीचे प्रणेते, थोर नेते वसंतराव नाईक यांच्या कार्याचा आढावा...
वसंतराव नाईक यांचा जन्म बंजारा समाजामध्ये सौ. होनुबाई फुलसिंग नाईक यांच्या पोटी दि. 1 जुलै 1913 रोजी गहुली (ता. पुसद, जि. यवतमाळ) या गावी झाला. वसंतराव नाईक यांचे आजोबा चतुरसिंग (राठोड) नाईक यांनी गहुली हे गाव वसविले. चतुरसिंग हे तांड्याचे प्रमुख होते. म्हणून त्यांना लोक नाईक म्हणत. वसंतरावाचे बालपण गहुली गावीच गेले. त्यांचे प्राथमिक शिक्षण पोहरादवी, उमरी, भोजला, बान्सी या ठिकाणी झाले. त्या काळी वाहनांची सोय नसल्यामुळे ते चार-पाच मैल चालत जाऊन मोठ्या जिद्दीने व कष्टाने शिक्षण घेतले. पुढे महाविद्यालयीन शिक्षण अमरावती व नागपूर येथे पूर्ण केले. तत्कालीन नागपूर जुन्या मध्यप्रदेशाची राजधानी होती. नागपूर शहराचे प्रभाव वसंतरावांच्या जिवनात फार महत्त्वाचे ठरले. तेथे त्यांच्यात अमुलाग्र बदल होत गेला. वाचनाची उदंड आवड निर्माण होवून महात्मा फुले व अन्य समाजसुधारकांचे वाचन केले. त्यांनी नागपूरच्या मॅरिश कॉलेजमध्ये प्रवेश घेतला. या महाविद्यालयात विविध जातीचे धर्माचे विद्यार्थी होते. त्यांचा त्यांच्याशी संपर्क आला. त्यातूनच समाजिक कार्याची आवड निर्माण होत गेली. मुळातच लहानपणापासून चाणाक्ष बुध्दी व वाकपटुता अंगी असल्याचे पुढील व्यक्तीवर प्रभाव पडत असे. सन 1933 साली नागपूर येथील नील सिटी हायस्कूलमधून मॅट्रिक परीक्षा वसंतराव नाईक उत्तीण झाले.
नागपूर विद्यापिठातून सन 1937 साली बी.ए. ची पदवी घेतली. पुढे 1940 साली नागपूर विद्यापीठ विधी महाविद्यालयातून एल.एल.बी शिक्षण घेऊन कायद्याची पदवी मिळवली. सन 1941 साली प्रारंभी अमारावतीचे प्रख्यात वकील कै.बॅ. पंजाबराव देशमुख यांच्याबरोबर व नंतर पुसद येथे स्वतंत्रपणे वकीली व्यवसायास सुरुवात केले. सर्वांचे विरोध पत्करुन दि. 16 जुलै 1941 रोजी त्यांनी बाह्मण समाजातील वत्सला घाटे हिच्याशी आंतरजातीय विवाह केला. दोघांच्याही परिवारातुन आंतरजातीय विवाहास कडाडुन विरोध होता. दोघानीही समाजाची पर्वा न करता समाज परिवर्तनाचा हा मार्ग त्यांनी निर्माण केला. वकीली व्यवसायात त्यानी दिन-दुबळ्या, गोर-गरिबांना मदतीचा हात देऊन विविध अडचणीतून बाहेर काढण्याचे प्रयत्न केले. यात त्यांना मोठे यश आले.
डॉ. पंजाबराव देशमुख या नेत्यांच्या मार्गदर्शनाखाली एक धडाडीचे समाज कार्यकर्ता म्हणून वसंतराव नाईक यांची संपूर्ण यवतमाळ जिल्ह्यात ख्याती पसरली. या काळात शेतक-यांच्या फायद्याचे 74 कलम पास व्हावे, यासाठी शेतक-यांत मिळून प्रचार केला. सन 1943 साली पुसद कृषी मंडळाचे अध्यक्ष म्हणून त्यांची निवड झाली. सन 1946 मध्ये त्यांनी काँग्रेस पक्षामध्ये प्रवेश केला. वसंतराव नाईक यांचे राजकारण हे मूळक्षेत्र नसताना देखील जनमानसाच्या विश्वासातून सन 1950 पर्यंत तालुका अध्यक्ष म्हणून निवड करण्यात आली. याचवर्षी पुसद हरिजन मोफत वसतीगृहाचे व दिग्रस राष्ट्रीय मोफत छात्रालयाचे नाईक हे अध्यक्ष होते. त्यावेळी विदर्भ प्रतिक अध्यक्ष बियागीकडे होते. सन 1946 मध्ये पुसद नगरपालिका निवडणुकीमध्ये काँगेसच्यावतीने निवडणुक लढविली त्यात वसंतराव नाईक विजयी होवून त्यांची पुसद नगरपालिकेचे नगराध्यक्ष म्हणून निवड झाली. त्यावेळी झालेल्या निवडणुकीत वसंतराव नाईक हे 12 हजार मतांनी निवडून आले. यवतमाळ जिल्ह्याचे प्रतिनिधी म्हणून मध्यप्रदेश विधानसभेवर निवडून आले तसेच मध्यप्रदेश मंत्रिमंडळात महसूल उपमंत्री झाले. सन 1951 साली ते मध्यप्रदेश सहकारी मध्यवर्ती बँकेचे संचालक होते. याचवर्षी विदर्भ प्रदेश समितीचे व कार्यकारिणीचे सदस्यपदी निवड झाली. सन 1956 साली भाषावार प्रांत रचना होईपर्यंत त्यांनी उपमंत्रीपदाची धुरा सांभाळली. त्यांनी महसूल खात्याची जबाबदारी अत्यंत हुशारीने पार पाडली. दि. 1 नोव्हेंबर 1956 रोजी द्विभाषीक मुंबई राज्याच्या मंत्रीमंडळात सहकार, कृषी, दुग्धव्यवसाय या खात्याचे मंत्री म्हणून त्यांचा समावेश झाला. त्यावेळी यशवंतराव चव्हाण हे मुख्यमंत्री होते. अखिल भारतीय काँग्रेसचे तसेच महाराष्ट्र विभागीय कॉग्रेस समितीचे व कार्यकारणीच्या सदस्यपदी त्यांची निवड झाली.
- ^ संदर्भाचा संदर्भhttp://indiacode.nic.in/fullact1.asp?tfnm=196123 हे संस्थळ २० एप्रील २०१४ रोजी सायं १७ वाजून १५ मिनीटांनी जसे अभ्यासले