दुसरा चंद्रगुप्त

| सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य | ||
|---|---|---|
| सम्राट, महाराजाधिराजा, देवराज, चक्र-विक्रम, परमभागवत | ||
| सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्याची सोन्याची मोहोर | ||
| अधिकारकाळ | इ.स. ३८० - इ.स. ४१५ | |
| अधिकारारोहण | सम्राट पदाभिषेक | |
| राज्याभिषेक | इ.स. ३८० | |
| राज्यव्याप्ती | पूर्वेस गंगेच्या मुखापासून पश्चिमेस सिंधूच्या मुखापर्यंत, तर उत्तरेस वर्तमान उत्तर पाकिस्तानापासून दक्षिणेस नर्मदेच्या खोऱ्यापर्यंत | |
| राजधानी | पाटलीपुत्र | |
| पूर्ण नाव | चंद्रगुप्त दुसरा | |
| जन्म | इ.स. ३५० | |
| पाटलीपुत्र, बिहार | ||
| मृत्यू | इ.स. ४१५ | |
| पाटलीपुत्र, बिहार | ||
| पूर्वाधिकारी | सम्राट समुद्रगुप्त | |
| उत्तराधिकारी | सम्राट कुमारगुप्त | |
| वडील | सम्राट समुद्रगुप्त | |
| आई | सम्राज्ञी दत्तादेवी | |
| पत्नी | महाराणी कुबेरनागा महाराणी ध्रुवदेवी | |
| संतती | प्रभावतीगुप्त कुमारगुप्त | |
| राजघराणे | गुप्त राजवंश | |
दुसरा चंद्रगुप्त, अर्थात चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (इ.स.चे ४थे शतक - इ.स. ४१५) हा भारतीय उपखंडातील गुप्त साम्राज्याचा सर्वाधिक प्रबळ सम्राट होता. इ.स. ३८० ते इ.स. ४१५ या कालखंडातल्या त्याच्या राजवटीत गुप्त साम्राज्याच्या भरभराटीचा परमोत्कर्ष झाला. त्याने पश्चिम भारतातील शक क्षत्रपांचे राज्य जिंकून घेत गुप्त साम्राज्याच्या सीमा विस्तारल्या. त्याच्या कारकिर्दीत गुप्तांचे साम्राज्य पूर्वेस गंगेच्या मुखापासून पश्चिमेस सिंधूच्या मुखापर्यंत, तर उत्तरेस वर्तमान उत्तर पाकिस्तानापासून दक्षिणेस नर्मदेच्या खोऱ्यापर्यंत पसरले. चिनी प्रवासी व बौद्ध भिक्खू फाश्यान दुसऱ्या चंद्रगुप्ताच्या राज्यकाळात उत्तर भारतात भटकून गेल्याचे उल्लेख त्याच्या प्रवासवर्णनात आढळतात. संस्कृत कवी कालिदास, संस्कृत वैयाकरणी अमरसिंह व खगोलशास्त्रज्ञ, गणितज्ञ असलेला वराहमिहिर या गुणिजनांचा तो आश्रयदाता होता, अशी समजूत आहे. भारतीय उपखंडात उत्तरकाळात प्रचलित असलेल्या शकांपैकी विक्रम संवत या शकाचा कर्ता तो असल्याचे मानले जाते.
बाह्य दुवे
[संपादन]
- हायपरहिस्टरी.कॉम - दुसऱ्या चंद्रगुप्ताचे जीवन व कारकीर्द (इंग्लिश मजकूर)