"मराठी लिपीतील वर्णमाला" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
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'''मराठी वर्णमाला''' किंवा '''मराठी मुळाक्षरे''' खालीलप्रमाणे आहेत; यात ६० [[वर्ण]]ांचा समावेश होतो. |
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===> विशेष संयुक्त व्यंजने=== |
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मराठी भाषेच्या शास्त्रीय वर्णमालेत १६ [[स्वर]] + इंग्रजीच्या संपर्कामुळे आलेले ‘[[ॲ]], [[ऑ]] हे स्वर मिळून १८ स्वर + दोन [[स्वरादी]] ([[अनुस्वार]] व [[विसर्ग]]) + ४० [[व्यंजन]]े असे एकूण ६० [[वर्ण]] दिले आहेत.<ref>मराठी युवकभारती इयत्ता १२ वी</ref> |
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==उच्चार== |
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मनुष्य एखाद्या वर्णाचा उच्चार करत असताना त्याच्या फुफ्फुसांतून हवा वर येते. ती हवा मग glottis, larynx वगैरे अवयवांतून जाते आणि शेवटी मुखात येते. येथे नाक, पडजीभ, टाळू, alveolar ridge, दात, ओठ, जीभ अशा वेगवेगळ्या अवयवांची उघडझाप होते व एक उच्चार तयार होतो. |
मनुष्य एखाद्या वर्णाचा उच्चार करत असताना त्याच्या फुफ्फुसांतून हवा वर येते. ती हवा मग glottis, larynx वगैरे अवयवांतून जाते आणि शेवटी मुखात येते. येथे नाक, पडजीभ, टाळू, alveolar ridge, दात, ओठ, जीभ अशा वेगवेगळ्या अवयवांची उघडझाप होते व एक उच्चार तयार होतो. |
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पडजीभ आणि जीभेची मागची बाजू एकत्र आली की वेगळा वर्ण उच्चारला जातो आणि |
पडजीभ आणि जीभेची मागची बाजू एकत्र आली की वेगळा वर्ण उच्चारला जातो आणि जिभेचे टोक व दात यांचा एकमेकांना स्पर्श झाल्यावर एक वेगळाच वर्ण उच्चारला जातो. |
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* पडजीभ (velum) |
* पडजीभ (velum) |
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* टाळू (palate) |
* टाळू (palate) |
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* जिभेची मागची बाजू, |
* जिभेची मागची बाजू, |
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इत्यादि अवयव तर वापरले जातातच. |
इत्यादि अवयव तर वापरले जातातच. |
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* पण |
* पण पडजिभेच्या मागचा भाग (uvula) हा भाग उर्दू भाषेतले काही वर्ण उच्चारण्यासाठी वापरला जातो. जसे- क़, ख़, ग़, ड़, ढ़, फ़ वगैरे. मराठीतही च, छ, ज, झ, ञ, फ आणि ड ही अक्षरे दोन-दोन प्रकारे उच्चारली जातात, पण वेगळी दाखवली जात नाहीत. |
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मराठीतल्या डावा या शब्दातला ड चा उच्चार वाड़ा या शब्दातल्या ड़ पेक्षा वेगळा आहे. |
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या सर्व अवयवांना उच्चारक (articulators) असे म्हणतात. |
या सर्व अवयवांना उच्चारक (articulators) असे म्हणतात. |
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==हेसुद्धा पहा == |
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==हे सुद् == |
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* [[मराठी व्याकरण]] |
* [[मराठी व्याकरण]] |
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==संदर्भ== |
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१९:५०, ७ फेब्रुवारी २०२० ची आवृत्ती
मराठी वर्णमाला किंवा मराठी मुळाक्षरे खालीलप्रमाणे आहेत; यात ६० वर्णांचा समावेश होतो.
> स्वर
अ | आ | ॲ | ऑ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ | ऋ | लृ | ॡ | ए | ऐ | ओ | औ | अं | अः |
---|
> स्वरादी
ं (अनुस्वार) | ः (विसर्ग) |
---|
> व्यंजने
क् | ख् | ग् | घ् | ङ् (कंठ्य व्यंजने) |
---|---|---|---|---|
च् | छ् | ज् | झ् | ञ् (तालव्य व्यंजने) |
च़् | छ़ ]] | ज़् | झ़् | ञ़् (दंततालव्य वर्णजने) |
ट् | ठ् | ड् | ढ् | ण् (मूर्धन्य व्यंजने) |
त् | थ् | द् | ध् | न् (दंत्य व्यंजने) |
प् | फ् | ब् | भ् | म् (ओष्ठ्य व्यंजने) |
फ़् | (दंतोष्ठ्य व्यंजन) | |||
य् | र् | व् | ल् | |
श् | ष् | स् | ||
ह् | ळ् |
> विशेष संयुक्त व्यंजने
क्ष् (क्+ष्) | ज्ञ् (ज्+ञ्) |
---|
मराठी भाषेच्या शास्त्रीय वर्णमालेत १६ स्वर + इंग्रजीच्या संपर्कामुळे आलेले ‘ॲ, ऑ हे स्वर मिळून १८ स्वर + दोन स्वरादी (अनुस्वार व विसर्ग) + ४० व्यंजने असे एकूण ६० वर्ण दिले आहेत.[१]
उच्चार
मनुष्य एखाद्या वर्णाचा उच्चार करत असताना त्याच्या फुफ्फुसांतून हवा वर येते. ती हवा मग glottis, larynx वगैरे अवयवांतून जाते आणि शेवटी मुखात येते. येथे नाक, पडजीभ, टाळू, alveolar ridge, दात, ओठ, जीभ अशा वेगवेगळ्या अवयवांची उघडझाप होते व एक उच्चार तयार होतो.
पडजीभ आणि जीभेची मागची बाजू एकत्र आली की वेगळा वर्ण उच्चारला जातो आणि जिभेचे टोक व दात यांचा एकमेकांना स्पर्श झाल्यावर एक वेगळाच वर्ण उच्चारला जातो.
उच्चारासाठी वापरले जाणारे अवयव
- पडजीभ (velum)
- टाळू (palate)
- नाकातील पोकळी (nasal cavity)
- ओठ
- दात
- जिभेचे टोक
- जिभेचा मधला भाग
- जिभेची मागची बाजू,
इत्यादि अवयव तर वापरले जातातच.
- पण पडजिभेच्या मागचा भाग (uvula) हा भाग उर्दू भाषेतले काही वर्ण उच्चारण्यासाठी वापरला जातो. जसे- क़, ख़, ग़, ड़, ढ़, फ़ वगैरे. मराठीतही च, छ, ज, झ, ञ, फ आणि ड ही अक्षरे दोन-दोन प्रकारे उच्चारली जातात, पण वेगळी दाखवली जात नाहीत.
मराठीतल्या डावा या शब्दातला ड चा उच्चार वाड़ा या शब्दातल्या ड़ पेक्षा वेगळा आहे.
या सर्व अवयवांना उच्चारक (articulators) असे म्हणतात.
हेसुद्धा पहा
संदर्भ
- ^ मराठी युवकभारती इयत्ता १२ वी