"सम्राट हर्षवर्धन" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
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[[ह्वेनसांग]] नुसार हर्षवर्धनांच्या सैन्यात जवळपास ५,००० [[हत्ती]], २,००० घोडस्वार व ५,००० पायदळ सैनिक होते. कालांतराने हि संख्या वाढून हत्ती ६०,००० व घोडस्वारांची संख्या १,००,००० (एक लाख) पर्यंत पोहोचली. सम्राट हर्षवर्धनांच्या सैन्यातील साधारण सैनिकांना चाट व भाट, अश्वसेनेच्या अधिकाऱ्यांना हदेश्वर, पायदळ सैन्याच्या अधिकाऱ्यांना बलाधिकृत आणि महाबलाधिकृत म्हटले जात होते. |
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०९:४३, ४ मार्च २०१७ ची आवृत्ती
सम्राट हर्षवर्धन | ||
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अधिकारकाळ | इ.स. ६०६ - इ.स. ६४७ | |
राज्याभिषेक | इ.स. ६०६ | |
राज्यव्याप्ती | जालंधर, पंजाब, काश्मिर, नेपाळ आणि बल्लभीपुर पर्यंत, (भारत) | |
जन्म | इ.स. ५९० | |
मृत्यू | इ.स. ६४७ | |
पूर्वाधिकारी | राज्यवर्धन | |
उत्तराधिकारी | यशोवर्मन | |
वडील | प्रभाकरवर्धन | |
राजघराणे | पुष्याभूती (वर्धन) | |
धर्म | बौद्ध धर्म |
सम्राट हर्षवर्धन (इ.स. ५९० – इ.स. ६४७) राज्यवर्धन नंतर इ.स. ६०६ मध्ये थानेश्वरच्या गादीवर बसले. हर्षवर्धन संबंधी बाणभट्टाच्या हर्षचरित मधून व्यापक माहित मिळले. हर्षवर्धनांनी जवजवळ ४१ वर्ष राज्य केले. या काळामध्ये त्यांनी आपल्या साम्राज्याचा विस्तार जालंधर, पंजाब, काश्मिर, नेपाळ आणि बल्लभीपुर पर्यंत केला होता. हर्षवर्धनांनी आर्यावर्तला सुद्धा आपल्या अधीन केले.
नाटककार आणि कवी
सम्राट हर्षवर्धन एक प्रतिष्ठीत नाटककार आणि कवी होते. त्यांनी 'नागानंद', 'रत्नावली' आणि 'प्रियदर्शिका' नावांच्या नाटकांची रचना केली. त्यांच्या दरबारात बाणभट्ट, हरिदत्त आणि जयसेन सारखे प्रसिद्ध कवी व लेखक शोभा वाढवत होते. सम्राट हर्षवर्धन हे बौद्ध धर्माच्या महायान संप्रदायाचे अनुयायी होते. असं मानलं जातं की, हर्षवर्धन दरदिवशी ५०० ब्राह्मणांना आणि १००० बौद्ध भिक्खुंना भोजन दान करीत होते. हर्षवर्धन यांनी इ.स. ६४३ मध्ये कंनोज आणि प्रयागमध्ये दोन विशाल धार्मिक सभांचे आयोजन केले होते. हर्षवर्धन द्वारे प्रयागमध्ये आयोजित सभाला मोक्षपरिषद् असे म्हटले जाते.
हर्षवर्धनांचा मृत्यु
सम्राट हर्षवर्धनांचा दिवस तीन भागात विभागला गेला होता. प्रथम भाग सरकारी कार्यांसाठी तथा इतर दोन विभागात धार्मिक कार्य संपन्न केले जात होते. सम्राट हर्षवर्धन यांनी इ.स. ६४१ मध्ये एका व्यक्तीला आपला दूत बनवून चीनला पाठवले. इ.स. ६४३ मध्ये चीनी सम्राटाने 'ल्यांग-होआई-किंग' नावाच्या दूताला हर्षवर्धनांच्या दरबात पाठवले. जवळजवळ इ.स. ६४६ मध्ये चीनी दूतमंडळ 'लीन्य प्याओं' आणि 'वांग-ह्नन-त्से'च्या नेतृत्वात तिसरे दूत मंडळ हर्षवर्धनांच्या दरबात पोहोचण्यापूर्वीच हर्षवर्धनांचे निधन झाले.
हर्षवर्धनाचा शासन प्रबंध
हर्षकालीन प्रमुख अधिकारी अधिकारी विभाग महाबलाधिकृत सर्वोच्च सेनापति/सेनाध्यक्ष बलाधिकृत सेनापति महासन्धि विग्रहाधिकृत संधिरु/युद्ध करने संबंधी अधिकारी कटुक हस्ति सेनाध्यक्ष वृहदेश्वर अश्व सेनाध्यक्ष अध्यक्ष विभिन्न विभागों के सर्वोच्च अधिकारी आयुक्तक साधारण अधिकारी मीमांसक न्यायधीश महाप्रतिहार राजाप्रासाद का रक्षक चाट-भाट वैतनिक/अवैतनिक सैनिक उपरिक महाराज प्रांतीय शासक अक्षपटलिक लेखा-जोखा लिपिक पूर्णिक साधारण लिपिक हर्ष स्वयं प्रशासनिक व्यवस्था में व्यक्तिगत रूप से रुचि लेता था। सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् गठिन की गई थी। बाणभट्ट के अनुसार अवन्ति युद्ध और शान्ति का सर्वोच्च मंत्री था। सिंहनाद हर्ष का महासेनापति था। बाणभट्ट ने हर्षचरित में इन पदों की व्याख्या इस प्रकार की है- अवन्ति - युद्ध और शान्ति का मंत्री। सिंहनाद - हर्ष की सेना का महासेनापति। कुन्तल - अश्वसेना का मुख्य अधिकारी। स्कन्दगुप्त - हस्तिसेना का मुख्य अधिकारी। राज्य के कुछ अन्य प्रमुख अधिकारी भी थे- जैसे महासामन्त, महाराज, दौस्साधनिक, प्रभातार, राजस्थानीय, कुमारामात्य, उपरिक, विषयपति आदि। कुमारामात्य- उच्च प्रशासनिक सेवा में नियुक्त। दीर्घध्वज - राजकीय संदेशवाहक होते थे। सर्वगत - गुप्तचर विभाग का सदस्य। सामन्तवाद में वृद्धि
हर्ष के समय में अधिकारियों को वेतन, नकद व जागीर के रूप में दिया जाता था, पर ह्वेनसांग का मानना है कि, मंत्रियों एवं अधिकारियों का वेतन भूमि अनुदान के रूप में दिया जाता था। अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नकद वेतन के बदले बड़े पैमाने पर भूखण्ड देने की प्रक्रिया से हर्षकाल में सामन्तवाद अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। हर्ष का प्रशासन गुप्त प्रशासन की अपेक्षाकृत अधिक सामन्तिक एवं विकेन्द्रीकृत हो गया। इस कारण सामन्तों की कई श्रेणियां हो गई थीं।
राष्ट्रीय आय आणि कर
हर्ष के समय में राष्ट्रीय आय का एक चौथाई भाग उच्च कोटि के राज्य कर्मचारियों को वेतन या उपहार के रूप में, एक चौथाई भाग धार्मिक कार्यो के खर्च हेतु, एक चौथाई भाग शिक्षा के खर्च के लिए एवं एक चौथाई भाग राजा स्वयं अपने खर्च के लिए प्रयोग करता था। राजस्व के स्रोत के रूप में तीन प्रकार के करों का विवरण मिलता है- भाग, हिरण्य, एवं बलि। 'भाग' या भूमिकर पदार्थ के रूप में लिया जाता था। 'हिरण्य' नगद में रूप में लिया जाने वाला कर था। इस समय भूमिकर कृषि उत्पादन का 1/6 वसूला जाता था।
सैन्य रचना
ह्वेनसांग नुसार हर्षवर्धनांच्या सैन्यात जवळपास ५,००० हत्ती, २,००० घोडस्वार व ५,००० पायदळ सैनिक होते. कालांतराने हि संख्या वाढून हत्ती ६०,००० व घोडस्वारांची संख्या १,००,००० (एक लाख) पर्यंत पोहोचली. सम्राट हर्षवर्धनांच्या सैन्यातील साधारण सैनिकांना चाट व भाट, अश्वसेनेच्या अधिकाऱ्यांना हदेश्वर, पायदळ सैन्याच्या अधिकाऱ्यांना बलाधिकृत आणि महाबलाधिकृत म्हटले जात होते.