ग्रह अवस्था
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││ श्री ││
सारावली हा ग्रंथ आचार्य कल्याण वर्मा यांनी लिहिला. ह्या ग्रंथामध्ये संपूर्ण होराशास्त्र सामावले आहे, अशी मान्यता आहे.
दीप्तः स्वसथो मुदितः शक्तो निपीडितो भीतः │
विकलः खलश्च कथितो नवप्रकारो ग्रहो हरिणा ││
स्वोच्चे भवतिच दीप्तः स्वस्थः स्वगृहे सुह्रद्धहे मुदितः │
शान्तः शुभवर्गस्थः शक्तः स्फुटकिरणजालश्च ││
विकलो रनिलुप्तकरो ग्रहाभिभूतो निपीडितश्चैवम् │
पापगणस्थश्च खलो नीचे भीतः समाख्यातः ││
ग्रह अवस्था
1. बाल्यादि अवस्था (अंशात्मक)
अवस्था | विषम राशी ग्रह | सम राशी ग्रह |
बाल | 0° - 6° | 24° - 30° |
कुमार | 6° - 12° | 18° - 24° |
युवा | 12° - 18° | 12° - 18° |
वृद्ध | 18° - 24° | 6° - 12° |
मृत | 24° - 30° | 0° - 6° |
टीप – ग्रह युवा अवस्थेत आपल्या कारकत्वाची पूर्ण फळे देतो.
2. दीप्तादि अवस्था (बृहत् पाराशरी होरा शास्त्राप्रमाणे)
क्र. | अवस्था प्रकार | ग्रह परिस्थिती |
1. | दीप्त | उच्च राशीत |
2. | स्वस्थ | स्व राशीत |
3. | मुदित | अधिमित्र राशीत |
4. | शान्त | मित्र राशीत |
5. | दीन | समग्रह राशीत |
6. | दुःखित | शत्रु राशीत |
7. | विकल | पापग्रह बरोबर |
8. | खल | पापग्रह राशीत |
9. | क्रोधी | अस्तंगत |
टीप – दीप्त, स्वस्थ, मुदित अवस्थेत पूर्ण फले, शांत व दीन अवस्थेत मध्यम तर दुःखित, विकल, खल, क्रोधी अवस्थेत अत्यल्प फळे मिळतात.
3. शयनादि अवस्था
ग्रहांच्या शयनादि अवस्था बारा आहेत. खालील सूत्रावरून आपण ह्या अवस्था काढू शकतो.
{(अ * ब * क) + चं + घ + ल} / 12 = शेष (जे उरेल ती संख्या)
वरील सूत्रात –
अ = ज्या ग्रहाची अवस्था काढायची आहे त्याच्या नक्षत्रस्वामीचा क्रमांक (1 ते 27 पैकी)
ब = ग्रह संख्या (रवि-1, चंद्र-2 वार क्रमाप्रमाणे)
क = नवमांश संख्या (ग्रह राशीमधे कोणत्या नवमांशात 1 ते 9)
चं = चंद्राच्या नक्षत्राचा क्रमांक (1 ते 27)
घ = जन्मवेळ घटी पळांत
ल = लग्न राशी क्रमांक (1 ते 12)
बाराने भाग दिल्यावर शेष (बाकीप्रमाणे) खालील अवस्था जाणाव्यात
बाकी | अवस्था | बाकी | अवस्था |
1 | शयन | 7 | सभा |
2 | उपवेशन | 8 | आगम |
3 | नेत्रपाणी | 9 | भोजन |
4 | प्रकाशन | 10 | नृत्यलिप्सा |
5 | गमन | 11 | कौतुक |
6 | आगमन | 12/0 | निद्रा |
टीप – शयनावस्थेची फले जाणण्याकरिता बृहत् पाराशरी होराशास्त्र ग्रंथ बघावा.
4. लज्जितादी 6 अवस्था (6)
अवस्था | प्रकार | फळे (भावस्थ फळे) |
लज्जित | पंचमस्थ ग्रह, राहूयुक्त
श, मं, सूर्य युक्त |
पंचम, सप्तम वा दशम
दुखप्रद पुत्र, दारा, कर्म नाश |
गर्वित | उच्च/मूळ त्रिकोण | शुभ भावस्थ फलदायक |
क्षुधित | शत्रूबरोबर, राशीत
वा दृष्ट/श |
5, 7, 10 भाव, भाव, दुःख
पुत्र, दारा, कर्म नाश |
तृषित | जलराशीत, पाप दृष्ट
व शुभ अदृष्ट |
अ(शुभ) भावस्थ फळे
---- |
मुदित | मीत्र राशीत, दृष्ट,
दृक किंवा गुरूबरोबर |
शुभ भावस्थ फळे
---- |
क्षोभित | रवियुक्त आणि पाप
दृक, दृष्ट वा शत्रू |
भावनाश 5, 7, 10 भाव
दुःखे पुत्र, दारा, कर्म नाशा |