"सदस्य:Sohan wankhade" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
Appearance
Content deleted Content added
No edit summary खूणपताका: मोबाईल संपादन मोबाईल वेब संपादन |
संतोष गोरे (चर्चा | योगदान) विकिपीडिया चा वैयक्तिक वापर खूणपताका: मिवि.-कोरे करणे Reverted मोबाईल संपादन मोबाईल वेब संपादन प्रगत मोबाईल संपादन |
||
ओळ १: | ओळ १: | ||
-------------------------------------------------------------------------- |
|||
'''मर्म''' |
|||
------------------------------------------------------------------------- |
|||
जे दिसायचे नव्हते, |
|||
ते दाखवून गेलास तू। |
|||
मर्म हे माझ्या दुःखाचे, |
|||
उघडे पाडून गेलास तू।। |
|||
आयुष्यात वाटले मिळेल, |
|||
मलाही कधीतरी रे सुख। |
|||
पण क्षणात मृगजळसमान, |
|||
हरवून गेलास तू।। |
|||
मर्म हे माझ्या दुःखाचे, |
|||
उघडे पाडून गेलास तू।। |
|||
कवी : सोहन वानखडे |
|||
-------------------------------------------------------------------------- |
|||
'''कष्ट''' |
|||
-------------------------------------------------------------------------- |
|||
जन्म हा कष्टाचा, |
|||
जगण्याचा मोह जडे। |
|||
सुखाचा शोध सुरु, |
|||
नि विश्वाभ्रमंन दुखाकडे।। |
|||
हाल हे सोसाया, |
|||
झाली विश्वनिर्मिती। |
|||
गरिबांचेच हात पुढे, |
|||
काय हीच धनिष्ठांची नीती।। |
|||
बालपण हे गेले वाया, |
|||
कष्टाचेच मिळे हाती फळ। |
|||
भासताच झाले सार्थक, |
|||
नि कोसळले आभाळ।। |
|||
जीव मुठीत बांधुनी, |
|||
जगण्यासाठी उठती कळा। |
|||
कष्टानेच झाला मृत्यू, |
|||
अन जीवन मार्ग आता मोकळा।। |
|||
जीवन मार्ग आता मोकळा।। |
|||
कवी : सोहन वानखडे |
|||
-------------------------------------------------------------------------- |
|||
'''।।माणुसकीचा श्वास मोकळा।।''' |
|||
-------------------------------------------------------------------------- |
|||
आताची हि पापी दुनिया, |
|||
विचार न करणार समतेचा। |
|||
निर्दय बनूनि अपमान करी, |
|||
त्या स्वाभिमानी स्त्रीत्वाचा।। |
|||
कसली स्थिती निर्माण जाहली, |
|||
आहे काय स्वातंत्र्य तयांना। |
|||
पाहू शकणार न मान उंच करुनि, |
|||
असला दिला का जन्म स्त्रियांना।। |
|||
मातृत्वाच्या छायेखाली, |
|||
ओघ पसरला करुणेचा। |
|||
कसला फुटला बांध हा आता, |
|||
असल्या क्रोधी मानवांचा।। |
|||
विचार न करता घेऊन निर्णय, |
|||
श्वास सोडता सुटकेचा। |
|||
मातृत्वाला दोष देऊनि, |
|||
करिता सौदा कोवड्या जीवाचा।। |
|||
जन्म जाहला जाईल वाया, |
|||
सोसुनी ह्या अवकळा। |
|||
भ्रूणहत्येचा मार्ग सोडूनि, |
|||
घ्या माणुसकीचा श्वास मोकळा।। |
|||
कवी : सोहन वानखडे |
|||
-------------------------------------------------------------------------- |
|||
'''पत्त्याचा डाव''' |
|||
-------------------------------------------------------------------------- |
|||
लोक असतात बिनविचारी, |
|||
भरते भुतांचा बाजार। |
|||
लागतात वाईट सवयी, |
|||
होतात देशी प्याला लाचार।। |
|||
भुकेले असतात घरचे त्यांच्या, |
|||
बसतो गरिबीचा घाव। |
|||
मुलंही चालतात त्याच मार्गाला, |
|||
मग सुटतो पैशांचा हाव।। |
|||
खेळतात वरली पत्ते, |
|||
आहे भयानक रोगाचे नाव। |
|||
तरीही संपत नाही, |
|||
त्यांचा पत्त्यांचा डाव।। |
|||
परिस्थितीचा आव आणून, |
|||
होई शिक्षणाचा अभाव। |
|||
प्रगतीचा मार्ग बंद करुनि, |
|||
होत नाही संसाराचा निभाव।। |
|||
असले नसले पैसे लावून, |
|||
करतात इज्जतीचा भाव। |
|||
हाती उरत नाही काही तेव्हा, |
|||
तमाशा पाहते सर्वच गाव।। |
|||
खेळतात वरली पत्ते, |
|||
आहे भयानक रोगाचे नाव। |
|||
तरी संपत नाही, |
|||
त्यांचा पत्त्यांचा डाव।। |
|||
वाढली लोकसंख्या, |
|||
म्हणून वाढली बेरोजगारी। |
|||
महागाईचा बोजा वाढवत, |
|||
सुटले सरकारी अधिकारी।। |
|||
पकडतात पोलीस, |
|||
मग होते धावा धाव। |
|||
भरावे लागतात पैसे, |
|||
तर कधी मिळतो रट्यांचा ताव।। |
|||
खेळतात वरली पत्ते, |
|||
आहे भयानक रोगाचे नाव। |
|||
तरी संपत नाही, |
|||
त्यांचा पत्त्याचा डाव।। |
|||
कवी : सोहन वानखडे |
|||
-------------------------------------------------------------------------- |
|||
'''आयुष्याच्या वाटेवर''' |
|||
-------------------------------------------------------------------------- |
|||
आयुष्याच्या वाटेवर तुला शोधितो, |
|||
कधी स्वप्नात तर कधी स्वर्गात। |
|||
गंधात गंध ही तुझाच दरवळतो, |
|||
कधी कळ्यात तर कधी फुलात।। |
|||
असंख्य शब्द ही स्तुतिस अपुरे पडतील, |
|||
तू माझी प्रेरणा आणि तूच माझा श्वास।। |
|||
बंद नजरेनेही नकळत प्रिये भेटशील, |
|||
तू माझे विश्व नि तूच माझा आभास।। |
|||
तुजविण सखे ना येत विचार ही कसला, |
|||
तुला स्मरून मी तुझ्यासाठीच झुरतो। |
|||
कसा जगू नसताना तू जीवनी, |
|||
ना भूतो ना भविष्य सहन होईल विरह तो।। |
|||
आयुष्याच्या वाटेवर सदैव तुला शोधितो, |
|||
कधी स्वप्नात तर कधी स्वर्गात। |
|||
गंधात गंध ही तुझाच दरवळतो, |
|||
कधी कळ्यात तर कधी फुलात।। |
|||
कवी : सोहन वानखडे |
|||
------------------------------------------------------------------------- |
|||
'''।। शिदोरी ।।''' |
|||
------------------------------------------------------------------------- |
|||
कोणास का कधी कळावे, |
|||
नसे सोबती का मागे वळून बघावे। |
|||
सुटतो साथ मग आप्तजनांचा, |
|||
मनी प्रश्न पडे कधी हसवावे नि कधी रडवावे।। |
|||
कोणास का कधी कळावे, |
|||
शब्द हे त्याचे नि बोल हि त्याचेच। |
|||
आयुष्याला नसे साथ कोणाची, |
|||
जन्म हा त्याचा नि मरणही त्याचेच।। |
|||
कोणास का कधी कळावे, |
|||
वाटेवरील मरण कसे पचवावे। |
|||
सुख-दुःखाची होईल शेवटी बेरीज, |
|||
उरले शिल्लक काहीच नसावे।। |
|||
कोणास का कधी कळावे , |
|||
अन कित्येक विचार उरी उफाडावे। |
|||
जणू सागरास जाऊनि भिडावे, |
|||
जाता जाता सुंदर क्षण आठवावे।। |
|||
कोणास का कधी कळावे...।। |
|||
कवी : सोहन वानखडे |
|||
------------------------------------------------------------------------- |
|||
'''।। परछायी ।।''' |
|||
------------------------------------------------------------------------- |
|||
मुश्किल सी राह है, |
|||
ओर वक्त कटता नही। |
|||
कैसे करू गुजारा अब, |
|||
सासे भी संभलती नही।। |
|||
बस वो यादे थी साथ, |
|||
ओर आधे अधुरे सपणे। |
|||
मन की इन मनमानीयो मे, |
|||
हमसे रुठ गये सब अपने।। |
|||
जमाना गुजर रहा है, |
|||
लेकिन हम जमाणे मे नही। |
|||
अकेले ही चल रहे है, |
|||
अपना कोई ठिकाणा कही।। |
|||
अब मुडकर भी ना देखु पिछे, |
|||
आगे अंधेरा ही सही। |
|||
दायरा भी ना देखा हमने, |
|||
छोडी धुंदली परछायी वहि।। |
|||
कवी : सोहन वानखडे |
|||
------------------------------------------------------------------------- |
|||
'''।। मौन किनारा ।।''' |
|||
------------------------------------------------------------------------- |
|||
नसता हा उन्मत्त होऊनि, |
|||
खाजील स्वर उदगारे। |
|||
चिंतेच्या थारोड्यात पहुडलो, |
|||
अंगावर उठती शहारे।। |
|||
समजून घ्या नंतर बोला, |
|||
नको ती हास्य वल्गना। |
|||
शब्दाने शब्दाला हरवण्या, |
|||
अभ्यास असावा जुना।। |
|||
माझा मी कधी न झुकणारा, |
|||
कर्तृत्वाचे सामर्थ्य उरी। |
|||
शब्दरूपी अपमान संपवण्या, |
|||
उजळे ज्ञान तेज मग भारी।। |
|||
काय सांगावे कसे सांगावे, |
|||
कळला ना हा अर्थ कोना। |
|||
किती येतील नि येतच राहतील, |
|||
साचेल ढीग शब्दांचा पुन्हा।। |
|||
शब्दांनी जग वैरी झाले, |
|||
जण आपुलकी ही हरवली। |
|||
आवरता न आवरे आता, |
|||
माझी स्वाभिमानी सावली।। |
|||
पुरे झाले हे शब्द पुराण, |
|||
नकोच असला निवारा। |
|||
असह्य झाले ऐकणे आता, |
|||
मी धरला मौन किनारा।। |
|||
मी धरला मौन किनारा।। |
|||
कवी : सोहन वानखडे |
|||
माझा मी नि मी कुठला |
|||
धरती माझी माय मी मातीतला ... |
|||
ऋण माझ्यावर या मायेचे |
|||
हिरवळ काया मी तिच्या कुशीतला ... |