"पहिला आर्यभट्ट" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
छो सांगकाम्याने वाढविले: hu:Árjabhata |
छो Bot: Migrating 51 langlinks, now provided by Wikidata on d:Q11359 |
||
ओळ २३: | ओळ २३: | ||
[[वर्ग:भारतीय खगोलशास्त्रज्ञ]] |
[[वर्ग:भारतीय खगोलशास्त्रज्ञ]] |
||
[[वर्ग:भारतीय गणितज्ञ]] |
[[वर्ग:भारतीय गणितज्ञ]] |
||
[[ar:أريابهاتا]] |
|||
[[be:Арыябхата]] |
|||
[[bn:আর্যভট্ট]] |
|||
[[ca:Aryabhata]] |
|||
[[co:Âryabhatà]] |
|||
[[de:Aryabhata]] |
|||
[[el:Αριαμπάτα]] |
|||
[[en:Aryabhata]] |
|||
[[es:Aryabhata]] |
|||
[[eu:Aryabhata]] |
|||
[[fa:آریابهاتا]] |
|||
[[fi:Aryabhata]] |
|||
[[fr:Âryabhata]] |
|||
[[gl:Âryabhata]] |
|||
[[gu:આર્યભટ્ટ]] |
|||
[[he:אריאבהטה]] |
|||
[[hi:आर्यभट]] |
|||
[[hr:Aryabhata]] |
|||
[[ht:Aryabhata]] |
|||
[[hu:Árjabhata]] |
|||
[[id:Aryabhata]] |
|||
[[is:Aryabhata]] |
|||
[[it:Aryabhata]] |
|||
[[ja:アリヤバータ]] |
|||
[[jv:Aryabhata]] |
|||
[[kk:Ариабхата I]] |
|||
[[kn:ಆರ್ಯಭಟ (ಗಣಿತಜ್ಞ)]] |
|||
[[ml:ആര്യഭടൻ]] |
|||
[[ms:Aryabhata]] |
|||
[[ne:आर्यभट]] |
|||
[[nl:Aryabhata]] |
|||
[[no:Aryabhata]] |
|||
[[or:ଆର୍ଯ୍ୟଭଟ]] |
|||
[[pa:ਆਰੀਆਭੱਟ]] |
|||
[[pl:Aryabhata]] |
|||
[[pms:Aryabhata ël vej]] |
|||
[[pnb:آریہ بھٹ]] |
|||
[[pt:Aryabhata]] |
|||
[[ro:Aryabhata]] |
|||
[[ru:Ариабхата]] |
|||
[[sa:आर्यभटः]] |
|||
[[sh:Aryabhata]] |
|||
[[sl:Aryabhata I.]] |
|||
[[sv:Aryabhata]] |
|||
[[ta:ஆரியபட்டர்]] |
|||
[[te:ఆర్యభట్టు]] |
|||
[[tr:Aryabhata]] |
|||
[[uk:Аріабхата I]] |
|||
[[ur:آریہ بھٹ]] |
|||
[[war:Aryabhata]] |
|||
[[zh:阿耶波多]] |
२२:०२, ६ एप्रिल २०१३ ची आवृत्ती
पहिला आर्यभट्ट (देवनागरी लेखनभेद: पहिला आर्यभट संस्कृत: आर्यभटः ) (इ.स. ४७६ - इ.स. ५५०) हा भारतीय गणितज्ञ व खगोलशास्त्रज्ञ होता. ११ ऑगस्ट इ.स. ५१९ चे कंकणाकृती सूर्यग्रहण पाहिल्याबद्दल आर्यभट्टाला काही काळ बहिष्काराला सामोरे जावे लागले होते. लोकांच्या अज्ञानामुळे आर्यभट्टास उपेक्षा भोगावी लागली.
लेखन
त्याने इ.स. ४९९ च्या सुमारास रचलेला आर्यभटीय हा गणित व खगोलशास्त्रावरील विवेचनात्मक ग्रंथ या विषयांवरील प्राचीनतम भारतीय साहित्यकृतींमधील एक मानला जातो. वराहमिहिराच्या साहित्यातील संदर्भांनुसार त्याने आर्य सिद्धान्त नावाचा अन्य एक ग्रंथही रचला. त्याचे भाग (१) गीतिका पाद, (२) गणितपाद,(३) कालक्रियापाद, (४) गोलपाद. मात्र वर्तमानकाळात त्या ग्रंथाची एकही संहिता उपलब्ध नाही असे दिसून येते. अंकगणित, बीजगणित व भूमिती या गणिताच्या शाखांचा त्याचा सखोल अभ्यास होता. आज बीजगणितावरचा उपलब्ध जुना ग्रंथ विख्यात ज्योतिर्वेत्ता आर्यभट्ट याचा आहे. व वयाच्या तेविसाव्या वर्षीच त्याने बीजगणितावरचा आणि ज्योतिषावरचा ग्रंथ लिहिला. म्हणून आर्यभट्ट यास बीजगणिताचा जनक असे मानण्यात येते.
आर्यभटाने ० अंशापासून ते ९० अंशापर्यंत ३/१११ अंशाच्या फरकाने सर्व कोन घेऊन त्यांचे ज्यार्ध कसे काढावेत हे सांगितलेले आहे. तसेच पृथ्वी स्वत:भोवती एकसारखी फिरत असते, म्हणजेच तिला दैनंदिन गती आहे हे सांगणारा पहिला शास्त्रज्ञ होय. वर्षाचे दिवस ३६५, घटी १५, पळे ३९, विपळे १५ इतक्या सूक्ष्म भागांपर्यंत कालमापन नोंदवून ठेवले आहे. तसेच 'पाय' नावाची गणित संकल्पनेची किंमत ६३,८३२/२०,००० आहे असेही नोंदवले आहे सूर्य सिद्धान्तावर याने लिहिलेला एक टीका ग्रंथ 'सूर्य सिद्धान्त-प्रकाश ' या नावाने प्रसिद्ध आहे.
आर्यभट्ट यांना ग्रहणाची शास्त्रीय कारणमीमांसा ज्ञात होती. अमावस्येला सूर्यग्रहण व पौर्णिमेस चंद्रग्रहण यांचा संबंध चंद्र व पृथ्वी यांच्या सावल्यांशी आहे, हे त्यांना माहीत होते. तसे त्यांनी नोंदवून ठेवले आहे. पहिला आर्यभट्ट याने सूत्रांचा उपयोग खगोलशास्त्र विषयक ग्रंथांत मोठ्या प्रमाणावर केला. अशा ग्रंथांत आकडेमोड द्यावी लागते परंतु मजकूर तर मुख्यत्वे काव्यमय व यमकात असतो. मग संख्या पद्यात बसवण्यासाठी त्या अक्षराने निर्दिष्ट करायच्या व ती अक्षरे वृत्तात बसवून श्लोकात लिहावयाची असा मार्ग आर्यभट्टाने अवलंबला. त्यामुळे अक्षरसंख्या कमी होते, शिवाय वृत्तबद्ध लिखाण होते. त्यावेळी लेखनाची साधने उपलब्ध नसल्याने त्या संख्या अशा प्रकारे लक्षात ठेवणेही सोपे जात असे. जसे --
वर्गाक्षराणि वर्गेऽ वर्गेऽ वर्गाक्षराणि कात् ङ मौ यः । खद्विनवके स्वरा नववर्गेऽ वर्गे नवान्त्यवर्गे वा ॥
भारताने पहिला उपग्रह आकाशात पाठवला होता, त्याला 'आर्यभट्ट' असे नाव दिले आहे.
हा लेख/विभाग स्वत:च्या शब्दात विस्तार करण्यास मदत करा. |
बाह्य दुवे
- अवकाशवेध.कॉम - पहिल्या आर्यभट्टाबद्दल माहिती (मराठी मजकूर)