"विष्णु नारायण भातखंडे" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक
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'''विष्णू नारायण भातखंडे''' ([[ऑगस्ट १०]], [[इ.स. १८६०|१८६०]] - [[सप्टेंबर १९]], [[इ.स. १९३६|१९३६]]) हे [[हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत|हिंदुस्तानी संगीताचे]] संशोधक, संगीतकार, गायक होते. त्यांनी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीताच्या वर्गीकरणाची [[थाट|थाट पद्धत]] विकसीत केली. |
'''विष्णू नारायण भातखंडे''' ([[ऑगस्ट १०]], [[इ.स. १८६०|१८६०]] - [[सप्टेंबर १९]], [[इ.स. १९३६|१९३६]]) हे [[हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत|हिंदुस्तानी संगीताचे]] संशोधक, संगीतकार, गायक होते. त्यांनी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीताच्या वर्गीकरणाची [[थाट|थाट पद्धत]] विकसीत केली. |
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१२:०२, १२ जुलै २०१८ ची आवृत्ती
विष्णू नारायण भातखंडे | |
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चित्र:चित्र:Bhatkhande.jpg विष्णु नारायण भातखंडे | |
आयुष्य | |
जन्म | ऑगस्ट १०, १८६० |
जन्म स्थान | मुंबई |
मृत्यू | सप्टेंबर १९, १९३६ |
व्यक्तिगत माहिती | |
धर्म | हिंदू |
वांशिकत्व | हिंदू |
नागरिकत्व | भारतीय |
देश | भारत |
संगीत साधना | |
गायन प्रकार | हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत |
संगीत कारकीर्द | |
पेशा | गायकी |
विष्णू नारायण भातखंडे (ऑगस्ट १०, १८६० - सप्टेंबर १९, १९३६) हे हिंदुस्तानी संगीताचे संशोधक, संगीतकार, गायक होते. त्यांनी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीताच्या वर्गीकरणाची थाट पद्धत विकसीत केली.
बालपण व शिक्षण
विष्णू नारायण भातखंडे यांचा जन्म ऑगस्ट १०, १८६० रोजी जन्माष्टमी च्या दिवशी मुंबई येथील वाळकेश्वरात झाला. लहानपणापासूनच त्यांचे संगीतकलेवर विशेष प्रेम होते.वयाच्या दहाव्या-अकराव्या वर्षी ते उत्तम बासरी वाजवायचे. मराठी शाळेतील व हायस्कूलचे शिक्षण झाल्यानंतर भातखंडे यांनी एल्फिन्स्टन कॉलेजमध्ये बी.ए. चे शिक्षण घेतले. याच काळात त्यांनी गोपाल्गिरी यांच्याकडून सतारीचे धडे आत्मसात केले.
जीवन व कार्य
इ.स. १८८५ साली ते कायद्याचे पदवीधर झाले व इ.स. १८८७ सालापासून वकिली करू लागले. पुढे काही काळ कराचीच्या न्यायालयात त्यांनी वकिली केली. भातखंडे यांनी त्यांच्या महाविद्यालयीन दिवसांत वल्लभदास नावाच्या सतारवादकाकडून सतार शिकायला आरंभ केला. पुढे रावजीबा नावाच्या ध्रुपदगायकाकडून ते गायकी शिकू लागले. गायकी व हिंदुस्तानी संगीताच्या इतर पैलूंबाबत त्यांना बेलबागकर, अली हुसेन खाँ, विलायत हुसेन खाँ यांचेही मार्गदर्शन लाभले.पत्नी व मुलीच्या निधनानंतर भातखंडे यांनी वकिली सोडून पूर्णपणे संगीताभ्यासाला वाहून घेतले. त्यांनी भरताच्या नाट्यशास्त्राचा आणि संगीत रत्नाकर या प्राचीन भारतीय संगीतविषयक ग्रंथाचा अभ्यास चालवला होताच; पण आता त्यांनी हिंदुस्तानी संगीतातील विस्कळीत वैविध्याला पद्धतशीर सैद्धांतिक चौकटीत बसवण्याकरता प्रयत्न केले. त्यातूनच त्यांनी राग, रागिण्या आणि पुत्ररागांमध्ये वर्गीकरण करण्याच्या जुन्या पद्धतीऐवजी 'थाट पद्धत' नावाची नवी वर्गीकरण पद्धत हिंदुस्तानी संगीतामध्ये विकसीत केली.
निधन
उतारवयात भातखंडे पक्षाघात व मांडीच्या अस्थिभंगामुळे अंथरूणास खिळून होते. सप्टेंबर १९, १९३६ रोजी गणेश चतुर्थीच्या दिवशी त्यांचे निधन झाले.