"बुद्ध पौर्णिमा" च्या विविध आवृत्यांमधील फरक

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०८:४४, १ मार्च २०१७ ची आवृत्ती

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साचा:ज्ञानसन्दूक अवकाश

बुद्ध जयन्ती (बुद्ध पूर्णिमा, वेसाक या हनमतसूरी) बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। बुद्ध जयन्ती वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। पूर्णिमा के दिन ही भगवान गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण समारोह भी मनाया जाता है। इस दिन ५६३ ई.पू. में बुद्ध का जन्म लुंबिनी, भारत (आज का नेपाल) में हुआ था। इस पूर्णिमा के दिन ही ४८३ ई. पू. में ८० वर्ष की आयु में, देवरिया जिले के कुशीनगर में निर्वाण प्राप्त किया था। भगवान बुद्ध का जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बुद्धत्व या संबोधी) और महापरिनिर्वाण ये तीनों एक ही दिन अर्थात वैशाख पूर्णिमा के दिन ही हुए थे।[१] ऐसा किसी अन्य महापुरुष के साथ आज तक नही हुआ है। अपने मानवतावादी एवं विज्ञानवादी बौद्ध धम्म दर्शन से भगवान बुद्ध दुनिया के सबसे महान महापुरुष है। इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में १८० करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिन्दू धर्मावलंबियों के लिए बुद्ध विष्णु के नौवें अवतार हैं। अतः हिन्दुओं के लिए भी यह दिन पवित्र माना जाता है। यह त्यौहार भारत, चीन, नेपाल, सिंगापुर, वियतनाम, थाइलैंड, जापान, कंबोडिया, मलेशिया, श्रीलंका, म्यांमार, इंडोनेशिया, पाकिस्तान तथा विश्व के कई देशों में मनाया जाता है।[२]

बुद्ध के ही बिहार स्थित बोधगया नामक स्थान हिन्दू व बौद्ध धर्मावलंबियों के पवित्र तीर्थ स्थान हैं। गृहत्याग के पश्चात सिद्धार्थ सत्य की खोज के लिए सात वर्षों तक वन में भटकते रहे। यहाँ उन्होंने कठोर तप किया और अंततः वैशाख पूर्णिमा के दिन बोधगया में बोधिवृक्ष के नीचे उन्हें बुद्धत्व ज्ञान की प्राप्ति हुई। तभी से यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है।[१] बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बुद्ध की महापरिनिर्वाणस्थली कुशीनगर में स्थित महापरिनिर्वाण विहार पर एक माह का मेला लगता है।[३] यद्यपि यह तीर्थ गौतम बुद्ध से संबंधित है, लेकिन आस-पास के क्षेत्र में हिंदू धर्म के लोगों की संख्या ज्यादा है और यहां के विहारों में पूजा-अर्चना करने वे बड़ी श्रद्धा के साथ आते हैं। इस विहार का महत्व बुद्ध के महापरिनिर्वाण से है। इस मंदिर का स्थापत्य अजंता की गुफाओं से प्रेरित है। इस विहार में भगवान बुद्ध की लेटी हुई (भू-स्पर्श मुद्रा) ६.१ मीटर लंबी मूर्ति है। जो लाल बलुई मिट्टी की बनी है। यह विहार उसी स्थान पर बनाया गया है, जहां से यह मूर्ति निकाली गयी थी।[३] विहार के पूर्व हिस्से में एक स्तूप है। यहां पर भगवान बुद्ध का अंतिम संस्कार किया गया था। यह मूर्ति भी अजंता में बनी भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण मूर्ति की प्रतिकृति है।

श्रीलंका व अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में इस दिन को 'वेसाक' उत्सव के रूप में मनाते हैं जो 'वैशाख' शब्द का अपभ्रंश है।[४] इस दिन बौद्ध अनुयायी घरों में दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाते हैं। विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं। इस दिन बौद्ध धर्म ग्रंथों का पाठ किया जाता है। विहारों व घरों में बुद्ध की मूर्ति पर फल-फूल चढ़ाते हैं और दीपक जलाकर पूजा करते हैं। बोधिवृक्ष की भी पूजा की जाती है। उसकी शाखाओं को हार व रंगीन पताकाओं से सजाते हैं।

गौतम बुद्ध

वृक्ष के आसपास दीपक जलाकर इसकी जड़ों में दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है।। इस पूर्णिमा के दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है। पिंजरों से पक्षियॊं को मुक्त करते हैं व गरीबों को भोजन व वस्त्र दान किए जाते हैं। दिल्ली स्थित बुद्ध संग्रहालय में इस दिन बुद्ध की अस्थियों को बाहर प्रदर्शित किया जाता है, जिससे कि बौद्ध धर्मावलंबी वहाँ आकर प्रार्थना कर सकें।[४]

वर्ष २००९ में बुद्ध पूर्णिमा की तिथि ९ मई थी। भारत के अलावा कुछ अन्य देशों में यह ८ मई को भी मनाया गया। थाईलैंड के महानिकाय और धम्मयुतिका मतों ने ८[५]; श्रीलंका में ८ मई[६] को मनाया गया। जबकि सिंगापुर में ९ मई[७] को मनाया गया।



हे सुद्धा पहा


चित्र दीर्घा

संदर्भ

  1. ^ a b मनोहर पुरी. "बुद्ध पूर्णिमा" (एचटीएम) (हिन्दी भाषेत). अभिव्यक्ति. Unknown parameter |accessyear= ignored (|access-date= suggested) (सहाय्य); Unknown parameter |accessmonthday= ignored (सहाय्य)CS1 maint: unrecognized language (link)
  2. ^ साचा:Citebook
  3. ^ a b लिखित कुमार आनंद. "बुद्ध पूर्णिमा" (एचटीएम) (हिन्दी भाषेत). नूतन सवेरा. Unknown parameter |accessyear= ignored (|access-date= suggested) (सहाय्य); Unknown parameter |accessmonthday= ignored (सहाय्य)CS1 maint: unrecognized language (link)
  4. ^ a b "बुद्ध पूर्णिमा या बुद्ध जयंती" (एचटीएम) (हिन्दी भाषेत). वेब दुनिया. Unknown parameter |accessyear= ignored (|access-date= suggested) (सहाय्य); Unknown parameter |accessmonthday= ignored (सहाय्य)CS1 maint: unrecognized language (link)
  5. ^ कैलेंडर ऑफ उपोसथ डेज़
  6. ^ श्रीलंका पब्लिक हॉलिडेज़-२००९
  7. ^ सिंगापुर पब्लिक हॉलिडेज़-२००९

बाह्य दुवे

साचा:प्रवेशद्वार


जगातील दु:ख नाहीसे करण्यासाठी भगवान गौतम बुध्दांनी निरनिराळे मार्ग अनुसरले. यासाठी स्वतःचे घरदार सोडून ध्यान मार्ग आणि तपश्चर्येचा मार्गही अनुभवला. मात्र, वैशाख शुद्ध पौर्णिमेला त्यांना ज्ञान प्राप्त झाले आणि दु:खाचे मूळ व ते नाहीसे करण्याचा मार्ग सापडला. ही पौर्णिमा बुद्ध पौर्णिमा म्हणून साजरी केली जाते.

आरंभीचा प्रथमावस्थेतील बौध्द धर्म हा अगदी साधा, समजण्यास सोपा, नैतिक तत्त्वांवर भीस्त ठेवणारा व मानवता, करुणा व समानता यांचा पुरस्कार करणारा असा होता. या काळात बुध्द हा असामान्य गुणवत्ता असलेला, पण मानवदेह धारण करणाराच मानला जात होता. त्यांना बोधीवृक्षाखाली संबोधीज्ञान प्राप्त झाले म्हणजे त्यांना या जगात कोणती अबाधित सत्ये आहेत व जगाचे रहाटगाडगे कसे चालते, या सबंधीचे ज्ञान प्राप्त झाले. त्यांना प्रथम चार आर्य सत्यांचा साक्षात्कार झाला. जगात खोल दृष्टीने विचार करता व सर्वत्र चालू असलेले भांडण-तंटे, झगडे, हाणामारी हे दृश्य पाहून सर्वत्र दु:ख पसरलेले आहे. या पहिल्या आर्य सत्याची जाणीव झाली.

दु:ख कशामुळे उत्पन्न होते, यासबंधी विचार करता त्यांना आढळून आले की, हे सर्व लोभामुळे, तृष्णेमुळे उत्पन्न होते. एकाच वस्तूबद्दल दोन व्यक्तींच्या मनात तृष्णा उत्पन्न झाली म्हणजे ती वस्तु स्वतःला मिळविण्याकरीता भांडण-तंटे, झगडा, हाणामारी आलीच. तेव्हा तृष्णा हे दु:खाचे मूळ आहे, असे दुसरे आर्य सत्य त्यांना उमजले.

ज्या ज्या गोष्टीला एखादे कारण आहे ती ती गोष्ट, कारण नाहीसे केले म्हणजे, विरोध पावते, नष्ट होते. हे अबाधित तत्त्व आहे. म्हणून त्या दु:खाचा निरोधही होऊ शकतो, हे तिसरे आर्य सत्य त्यांना समजले. निरोध होऊ शकतो तर तो प्राप्त करून घेण्याचा मार्ग असलाच पाहिजे, हे चौथे आर्य सत्यही त्यांना कळून आले. यालाच आर्य अष्टांगिक मार्ग म्हणतात.

सर्व भारतीय धर्माप्रमाणे बौध्दांचाही कर्मावर व पुनर्जन्मावर विश्वास आहे. तेव्हा हे जन्ममरणाचे रहाटगाडगे कसे चालते, याचे स्पष्टीकरण करणारा प्रतीत्य-समुत्पादही त्यांना समजला. प्रतीत्य-समुत्पाद म्हणजे एखादी गोष्ट उत्पन्न होते ती स्वयंभू नसून काही तरी पूर्वगामी कारण परंपरेवर अवलंबून आहे. तेव्हा जन्ममृत्यु कसे होतात, याचे स्पष्टीकरण करणारी कार्यकारणपरंपरा आहे. एका जन्माचा मागील व पुढील जन्मांशी कार्यकारणपरंपरेने कसा संबंध पोहोचता, हे प्रतीत्य-समुत्पादात सांगितले आहे.

बुद्ध पौर्णिमेला विशेष ठिकाणी जाऊन सामुहिक प्रार्थना करण्याची पद्धत आहे.